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________________ ॐ जैन-तत्व प्रकाश ३६६ ] (१) एक भेद - सब जीवों का चेतना लक्षण एक होने से जीव एक प्रकार का है। (२) दो भेद - जीवों के दो भेद हैं- सिद्ध और संसारी । (३) तीन भेद - सिद्ध, त्रस और स्थावर । (४) चार भेद - स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी और अवेदी । (५) पाँच भेद - सिद्ध, मनुष्य, देव, तिथंच और नारकी । (६) छह भेद - एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय और अनिन्द्रिय | (७) सात भेद - पृथ्वीकाय, अप्काय, वायुकाय, तेजस्काय, वनस्पतिकाय और काय | (८) आठ भेद-नारक, तिर्यन्च, तिर्यन्वनी, मनुष्य, मनुष्यनी, देव, देवांगना और सिद्ध । (E) नौ भेद - नारक, तिर्यन्च, मनुष्य, देव इनके पर्याप्त अपर्याप्त भेद से भेद और में सिद्ध जीव । C င် (१०) दस भेद - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, सिद्ध । (११) ग्यारह भेद - एकेन्द्रिय, द्वीद्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रीय, पंचेन्द्रिय के पर्या पर्याप्त के भेद से दस और ग्यारहवें विद्ध जीव । (१२) बारह भेद - पाँच स्थावरों के सूक्ष्म और बादर के भेद से दस भेद, ग्यारहवें त्रस और बारहवें सिद्ध । - (१३) तेरह भेद - पट्काय के पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से बारह और १३ वें सिद्ध जीव । (१४) चौदह भेद – नारक, तिर्यञ्च तिर्यञ्चनी, मनुष्य, मनुष्यनी, भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिक यह चारों देव और इनकी चार देवांगना मिलकर १३ और चौदहवें सिद्ध जीन ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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