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________________ ॐ धर्म प्राप्ति [३८५ कुछ लोग कहते हैं कि क्या व्याख्यान सुनने जाएँ ! वे तो अपना ही अपना गाते हैं। जो कहते हैं, उसके अनुसार चलने वाला कौन है ? ऐसे निन्दक को जानना चाहिए कि: पादे पादे निधानानि, योजने रस कुप्पिका । भाग्यहीना न पश्यन्ति, बहुरत्ना वसुन्धरा ॥ अर्थात्-पग-पग पर धन का खजाना है और योजन-योजन पर रस की कूपिका है। यह वसुन्धरा रत्नों ने भरी हुई है। मगर भाग्यहीन जन उन्हें देख नहीं सकते। इसी प्रकार प्राप्त ऋद्धि-सम्पदा के त्यागी, महावैरागी, पण्डित-प्रवर, शुद्धाचारी, आत्मार्थी, आत्मानन्दी, तपस्वी, वैयावच्ची साधु-साध्वी मौजूद हैं और दयावान, दानवीर, दृढ़धर्मी, संघभक्त, सातादाता, अल्पारंभी, अल्पपरिग्रही, गृहस्थावस्था में रहते हुए भी आत्मा का कल्याण करने वाले, विद्वान् , (४) पाषाण के समान-पत्थर के ऊपर वर्षा होती है तो वह भीग जाता है किन्तु उसके भीतर जरा भी पानी का प्रवेश नहीं होता। इसी प्रकार कई श्रोता ऐसे होते हैं जो उपदेश सुनते समय बड़ा वैराग्य दिखलाते हैं किन्तु दुष्कृत्य करते तनिक भी नहीं रते । इससे जान पड़ता है कि उनका अन्तःकरए पत्थर के समान कटोर है। (५) सर्प के समान-साँप दूध पीकर भी उसे विष के रूप में परिणत करता है, इसी प्रकार कितनेक श्रोता उपदेशक और उपदेश के विरोधी बन जाते हैं-धर्म को ही उत्थापने - लंगते हैं। (६) भैंसा के समान-कितनेक श्रोता सभा रूपी सरोवर में विकथा-कदाग्रह रूप गोबर और मूत्र त्याग कर उपदेश-जल का पान करते हैं। (७) फूटे घड़े के समान-जैसे फूटे घड़े में पानी टिकता नहीं है, उसी प्रकार कितनेक श्रोताओं के मन में सुना हुश्रा उपदेश नहीं ठहरता है । वे वहीं का वहीं पल्ला झाड़ कर चल देते हैं। (८) डॉस के समान-जैसे डाँस दंश करके लोहू पीता है, उसी तरह कितनेक श्रोता सद्बोध को, सद्बोध देने वाले को और सद्गुण को छोड़कर दुर्गुण और दुर्गुणी को ग्रहण करते हैं। () जौंक के समान-जैसे जोक गाय के स्तन में लग कर भी दूध नहीं पीती फिन्त रक्त पीती है, उसी प्रकार कितनेक श्रोता गुणों को छोड़कर अवगुण ही ग्रहण करते हैं । यह नौ प्रकार के श्रोता अधम और उपदेश के लिए अपात्र हैं।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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