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धर्म प्राप्ति ॐ
बीच समस्त संसारी जीव फंसे हुए हैं। ऐसी स्थिति में इन जीवों की काया का क्या भरोसा है ? कौन कह सकता है कि मेरा शरीर कल तक भी कायम रह सकेगा ! अगले क्षण का भी तो विश्वास नहीं किया जा सकता! तात्पर्य यह है कि इस जीवन का किसी समय अवश्य ही अन्त आना है, पर वह समय कौन-सा होगा, यह नहीं कहा जा सकता। करोड़ों उपाय करने पर भी मृत्यु से कोई बच नहीं सकता। अनादिकाल से लेकर आज तक एक भी मनुष्य मौत के चंगुल से नहीं बच सका और किसी का बच सकना सम्भव भी नहीं है । काल अच्छे, बुरे, राजा, रंक, बालक, वृद्ध, जवान आदि किसी का भी विचार नहीं करता।
इस प्रकार शांतचित्त होकर विचार करने से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि लम्बी आयु प्राप्त होना बहुत कठिन है। जिसे लम्बी आयु मिली है वह प्रबल पुण्य का भागी है । हे मनुष्य ! तनिक विचार कर कि असीम अनन्त पुण्य का व्यय करके तूने जो दीर्घ आयु प्राप्त की है, उसके बदले में तू क्या ले रहा है ? कहीं पुण्य की अनमोल पुँजी गँवा कर तू पाप तो उसके बदले नहीं खरीद रहा है ? बन्धु ! धर्म-कार्य कर, प्रमाद न कर । इससे तेरी पुण्य की पूजी बढ़ेगी।
५-अविकल इन्द्रियाँ
__ लम्बी आयु भी कदाचित् पुण्यभोग से मिल गई तो भी उससे आत्मा का प्रयोजन सिद्ध नहीं होता । अगर इन्द्रियाँ यथायोग्य कार्य न करती हों तो जीवन प्रायः व्यर्थ हो जाता है। कोई जन्म से अन्धा होता है, कोई बहिरा
द्वन्द्वा जन्मजराविपत्तिमरणं त्रासश्च नोत्पद्यते.
पीत्वा मोहमयी प्रमादमदिरामुन्मत्तभूत्तं जगत् ॥ अर्थात-सर्य का उदय और अस्त होने से दिनोंदिन आयु घटती जाती है। फिर भी अनेक कामकाज और उपाधियों में फंसे हुए जीव को काल का खयाल नहीं पाता। खुद जन्म जरा मरण के दुःख भोगते देखता है, फिर भी त्रास नहीं उत्पन्न होता कि मेरी भी यही अवस्था होने वाली है-मेरी भी मृत्यु होने वाली है, इसलिए थोड़ा-बहत धर्मकार्य कर ल ! सारा संसार मानो मोह की मदिरा में छका हुआ बेभान हो रहा है !