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* श्री जिनाय नमः *
জলু-লু-ল্কাহ
प्रथम खण्ड
प्रवेशःसिद्धाणं णमो किच्चा, संजयाणं च भावओ। अत्थधम्मगई तच्चं, अणुसद्धिं सुणेह मे ॥
-श्री उत्तराध्ययन, अ०२०,१. अर्थः-सिद्धों को अर्थात् अरिहन्तों और सिद्धों को तथा संयतों को अर्थात् प्राचार्य, उपाध्याय एवं साधुओं को विशुद्ध भाव से नमस्कार करके समस्त अर्थों की सिद्धि करने वाले, आचरणीय धर्म के स्वरूप को अनुक्रम से कहता हूँ। हे भक्त जीवो! उसे मन, वचन, काय के योग को स्थिर करके श्रवण करो।