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ऊपर लिखे ४१ कालिक सूत्र और ३० उत्कालिकसूत्र मिलकर ७१ हैं। इनमें आवश्यकसूत्र को मिला देने से ७२ हो जाते हैं । आवश्यक में काय दोष टालने की कोई आवश्यकता नहीं रहती ।
* उपाध्याय
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इस प्रकार शास्त्रानुसार ७२ सूत्रों का ऊपर उल्लेख किया गया है । इनमें से कुछ आजकल उपलब्ध ही नहीं हैं । इस विषय का स्पष्टीकरण 'पक्षीसूत्र' की वृति में निम्न लिखित दिया गया है:
इस काल में (१) खुड्डिया विमानविभक्ति ( २ ) महल्लिया विमान विभक्ति (३) अंगचूलिया (४) बंगचूलिया (५) विवाहचूलिया (६) अरुणोवाई (७) वरुणोववाई (८) गरुडोबवाई ( 8 ) धरणोववाई (१०) वेसमणोवबाई (११) वेलंधरोववाई (१२) देविंदोववाई (१३) उड्डाणसुए (१४) समुड्डाणसुए (१५) नागपरियावलियाओ (१६) कपियाकपिया (१७) असिविसभावणाणं (१८) दिट्ठिविसभावणाणं (१६) चरणभावणाणं (२०) महासुमिणभावणा (२१) तेयग्गनिसग्गाणं, यह २१ कालिक सूत्र आज प्राप्त नहीं हैं। इसके अतिरिक्त (१) कप्पियाकप्पियं (२) चूलकप्पसुर्य (३) महाकप्पसुयं (४) महापना (५) पमायापमायं ( ६ ) पोरसीमंडल (७) मंडल प्रवेश (८) विद्याचरणविणिच्छ ( ६ ) भाणविभक्ति (१०) मरणविभक्ति (११)
विसोहि (१२) संलेहणा सुर्य (१३) वीयरागसुयं (१४) विहारकप्पो (१५) चरणविसोहि, यह पन्द्रह उत्कालिक सूत्र भी आजकल उपलब्ध नहीं हैं । मगर इनके नाम से मिलते-जुलते दूसरे सूत्र देखे जाते हैं । जान पड़ता है कि उनकी रचना अर्वाचीन काल के आचार्यों ने की होगी ।
कहते हैं, महानिशीथ सूत्र आठ आचार्यों द्वारा रचा गया है । उन आचार्यों के नाम इस प्रकार हैं: - (१) हरिभद्र (२) सिद्धसेन (३) वृद्धवादी (४) यक्षसेन (५) देवगुप्त (६) यशोधर (७) रविगुप्त ( ८ ) स्कंदिलाचार्य |
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कितने ही सूत्र बारह वर्ष के भयानक दुर्भिक्ष के समय विच्छिन्न हो गये । दुर्भिक्ष के समय सूत्र भंडारों में यों ही पड़े रहे । कोई सँभालने वाला नहीं मिला । अतः वे दीमक के आहार बन गये । दुर्भिक्ष ने हमारी पार शास्त्रसम्पत्ति को सदा के लिए विनष्ट कर दिया ! अलबत्ता, कतिपय