SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * श्राचार्य, [१६५ लेना । [२३] उवणिहिए-गृहस्थ भोजन करता हो, उसी में से लेना, अन्यथा नहीं । [२४] परिमितपिंडवत्तिए-सरस और अच्छा आहार मिले तो लेना। [२५] सुहेसणीए-खातिरी करके लेना । [२६] संखादत्तीए-चम्मच और वस्तु की संख्या निर्धारित करके लेना अर्थात् एक, दो या तीन चीजें लूँगा और इतने चम्मच चीज लूँगा, इस प्रकार का निश्चय कर लेना।। __ क्षेत्र से भिक्षा के आठ अभिग्रह हैं :-(१) पेटीए-चारों कोनों के चार घरों से आहार लेना । (२) अद्धपेटीए-दो कोनों के दो घरों से आहार लेना । (३) गोमुत्ते-गोमुत्र की तरह टेढ़ा-मेढ़ा घरों का क्रम बना कर आहार लेना, जैसे एक घर पहली कतार में से और दूसरा दूसरी कतार में से , तीसरा फिर पहली कतार में से और चौथा दूसरी कतार में से भिक्षा के लिए चुनना और उन्हीं में से भिक्षा लेना । (४) पतंगिए-पतंग के उड़ने के समान फुटकल घरों से लेना (५) अभ्यन्तर संखावत्त—पहले नीचे के घर से और फिर ऊपर के घर से लेना । (६) बाहिरसंखावत्त—पहले ऊपर के घर से फिर नीचे के घर से लेना । (७) गमणे-जाते समय भिक्षा लेना, लौटते समय न लेना । (८) आगमणे-भिक्षा लिये बिना जाकर सिर्फ लौटते समय लेना। काल से भिक्षाचर्या के अनेक प्रकार के अभिग्रह हैं । जैसे—प्रथम प्रहर का लाया आहार तीसरे प्रहर में खाना, दूसरे प्रहर में लाया चौथे प्रहर में खाना या तीसरे प्रहर में खाना, प्रथम प्रहर में लाया आहार दूसरे प्रहर में खाना । इसी तरह घटिका (घड़ी) आदि के अभिग्रह करना । भाव से भी भिक्षाचर्या के अनेक भेद हैं । जैसे—सब वस्तुएँ अलगअलग लावे और सब को मिलाकर खावे । रुचिकर (प्रिय) वस्तु का त्याग करे । आहार करते समय ममत्व न करे । रूक्षवृत्ति (उदासीनभाव) रक्खे । इत्यादि। (४) रसपरित्याग- जीभ को स्वादिष्ट लगने वाली और इन्द्रियों को प्रबल तथा उत्तेजित करने वाली वस्तुओं का त्याग करना रसपरित्याग तप कहलाता है। कहावत है--'रसाणी सो रोगाणी' अर्थात् जो रस में
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy