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________________ ® जैन-तत्व प्रकाश - धूमधाम से मनाया गया। उसके उपरान्त श्री सूरजमलजी यादगिरि लौट गए । महाराज श्री ने वहाँ से करमाले की तरफ विहार किया। यह समाचार महाराष्ट्र में फैलते ही श्री रत्नऋषिजी महाराज ठाणे ३ सहित करमाले पधारे। महाराज श्री के स्वागत के लिए श्रावकों ने बाजार से स्थानक तक पताकाएँ लगाई । महात्मा श्री रत्नऋषिजी तथा श्री आनन्दऋषिर्जी आदि महात्मा अन्य श्रावक श्राविकाओं सहित एक मील तक सन्मुख पाए एवं जयध्वनि गायन आदि के साथ नगर प्रवेश कराया। श्रीसंघ ने अत्यन्त भाग्रह पूर्वक चौमासे की स्वीकृति ली । वहाँ से ठाणा ६ सहित आप.मिरच गाँव पधारे । वहाँ लाला ज्वालाप्रसादजी सहकुटुम्ब दर्शनार्थ आए । लालाजी ने पाथर्डी संस्था को २५००) रु० का दान दिया। श्री अमोलकऋषिजी महाराज का चौमासा कराने के लिए अहमदनगर का श्रीसंघ मिरचगाँव आया, आग्रह से विनती की, किन्तु आपकी इच्छा श्री रतनऋषिजी म० के साथ चौमासा करने की थी; अतः स्वीकृति नहीं दी। चौमासा करमाले ही हुआ । चौमासे में लगभग ६०००-७००० लोग दर्शनार्थ आए । वर्द्धमान जैन पाठशाला की स्थापना हुई जो श्री बुधमलजी मोहनलालजी के आश्रय से. चल रही है । श्रमणसूत्र युक्त प्रतिक्रमण, सद्धर्म बोध आदि पुस्तकें प्रसिद्ध हुई । श्री कहानजी ऋषिजी महाराज के संप्रदाय के साधु साध्वियों का सम्मेलन फाल्गुन महीने में करने का निश्चय हुआ। चौमासे के पश्चात् श्री रत्नऋषिजी महाराज ने ठाणा ३ सहित मिरचगांव की तरफ विहार किया। चरितनायकजी ने ठाणे ३, जामखेड़ की तरफ विहार किया। अरणगांव वालों और जामखेड़ वालों ने पधरामणी का करमाले के समान ही आयोजन किया। यहां से महाराज आष्टी पधारे । वहां आपके दर्शनार्थ महासतीजी श्री रंभाकँवरजी ठाणा १२, पधारे। श्री नंदकंवरजी ठाणा ३ भी पधारे । ग्राम के हाकिम साहिब भी महाराज श्री के व्याख्यान में आए और मुक्तकंठ से महाराज श्री की प्रशंसा की। वहां से आप कडे पधारे । श्री महासतीजी भी वहां पथारी । यहां पर भी जैन पाठशाला की स्थापना हुई। कुछ दिन बाद छात्रावास (बोडिंग) भी स्थापित हुआ । आजकल भी संस्थान और अमाथालय दोनों में सनाथ और मनाथ दोनों तरह के बच्चों
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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