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________________ अरिहन्त [ १२१ ८०० योजन ऊंचे और २४०० योजन की अंगनाई वाले, ४०००० विमान हैं। यहाँ के देवों की आयु जघन्य १४ सागरोपम और उत्कृष्ट १७ सागरोम की है । सातवें देवलोक की सीमा से पाव रज्जु ऊपर ७ । रज्जु घनाकार विस्तार में मेरु पर्वत के वरावर मध्य में, घनवात और घनोदधि के आधार से, वाँ 'सहस्रार' देवलोक है । इसमें चार प्रतर हैं। इन प्रतरों में ८०० भोजन ऊँचे और २४०० योजन की अंगनाई वाले ६००० विमान हैं। यहाँ के देवों की आयु जघन्य १७ सागरोपम की और उत्कृष्ट १८ सागरोपम की है । आठवें देवलोक की सीमा से पाव रज्जु ऊपर, १२ || रज्जु घनाकार विस्तार में, मेरु से दक्षिण दिशा में नौवाँ 'मानत' देवलोक और उत्तरदिशा में दसवाँ 'प्राणत' देवलोक है । दोनों लगडाकार हैं। दोनों में चार-चार प्रतर हैं । इन प्रतरों में ६०० योजन ऊँचे और २२०० योजन की अंगनाई वाले, दोनों के मिलाकर ४०० विमान हैं। नौवें देवलोक के देवों की आयु जघन्य १८ सागरोपम और उत्कृष्ट १६ सागरोपम की है। दसवें देवलोक के देवों की आयु जघन्य १६ सागरोपम और उत्कृष्ट २० सागरोपम की है । नौवें और दसवें देवलोक की सीमा से आधा रज्जु ऊपर, १०॥ रज्जु घनाकार विस्तार में, मेरु से दक्षिण दिशा में, ग्याहरवाँ 'रण' देवलोक है और उत्तर दिशा में बारहवाँ 'अच्युत' देवलोक है। इन दोनों में भी चार चार प्रतर हैं, जिनमें १००० योजन ऊँचे और २२०० योजन की अंगनाई वाले, दोनों देवलोकों के मिलकर ३०० विमान हैं । ग्यारहवें देवलोक के देवों की आयु जघन्य २० सागरोपम और उत्कृष्ट २१ सागरोपम की है । बारहवें देवलोक के देवों की आयु जघन्य २१ सागरोपम और उत्कृष्ट २२ सागरोपम की है ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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