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________________ ११४ ] * जैन-तत्त्व प्रकाश आरा लगेगा ; सावधान हो जाओ। धर्मकृत्य करना है सो कर लो।' इस प्रकार इन्द्र की वाणी सुनकर उत्तम धर्मात्मा पुरुष ममत्व का त्याग करके अनशन व्रत ( संथारा ) ग्रहण कर समाधिस्थ हो जाते हैं। फिर संवर्तक वायु* चलती है। उस भयानक वायु के कारण वैताढ्य पर्वत, ऋषभकूट, लवणोदधि की खाड़ी, गंगा नदी और सिन्धु नदी, इन पाँच के अतिरिक्त समस्त पर्वत, किले, महल और घर टूट-फूट कर भूमिसात (जमीदोज ) हो जाते हैं। पहले प्रहर में जैन-धर्म का विच्छेद, दूसरे प्रहर में अन्य समस्त धर्मों का विच्छेद, तीसरे प्रहर में राजनीति का विच्छेद और चौथे प्रहर में बादर अग्नि का विच्छेद हो जाता है । (६) दुखमा-दुखमा-उक्त प्रकार पंचम आरे की पूर्णाहुति होते ही २१००० वर्ष का छठा आरा आरम्भ होता है । तब भरतक्षेत्र का अधिष्ठाता देव, पंचम पारे के विनष्ट होते हुए मनुष्यों में से बीज रूप कुछ मनुष्यों को उठाले जाता है। वैताढ्य पर्वत के दक्षिण और उत्तर भाग में जो गंगा और सिन्धु नदी हैं, उनके आठों किनारों (तटों) में से प्रत्येक किनारे पर नौ-नौ बिल हैं । सब मिलचर Exe=७२ बिल हैं । प्रत्येक बिल में तीन तीन मंजिल हैं। उक्त देव उन मनुष्यों को इन बिलों में रख देता है। छठे बारे में पहले की अपेक्षा वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, में शुभ पुद्गलों की पर्याय में अनन्तगुनी हानि हो जाती है । आयु क्रम से घटते-घटते २० वर्ष की और शरीर की उँचाई सिर्फ एक हाथ की रह जाती है। शरीर में आठ पसलियाँ रह जाती हैं । अपरिमित आहार की इच्छा होती है अर्थात् कितना भी खा जाने पर तृप्ति नहीं होती। रात्रि में शीत और दिन में ताप अत्यन्त प्रबल होता है । इस कारण वे मनुष्य बिलों से बाहर नहीं निकल सकते। सिर्फ सूर्योदय के समय और सूर्यास्त के समय एक मुहूत्ते के लिये बाहर निकल पाते हैं । उस समय गङ्गा और सिन्धु नदियों का पानी साँप के समान बाँकी गति से बहता है । गाड़ी के पहिये के मध्य भाग जितना चौड़ा * दिगम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथों में अवसर्पिणी काल पलटते समय सात-सात दिनों की वृष्टि के नाम इस प्रकार लिखे हैं:-१ पवन, २ शीत, ३ क्षारजल, ४ जहर, ५ वज्राग्नि ६ वालु-रज और ७ धूम्रवृष्टि ।
SR No.010014
Book TitleJain Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherAmol Jain Gyanalaya
Publication Year1954
Total Pages887
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size96 MB
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