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मे खूब महोत्सव से फाल्गुन शुक्ला १३ शनिवार को दीचा दिलाई । तत्पथात् अनेक वर्षों से होती हुई सिकन्द्राबाद बालों की विनती स्वीकार कर यहां चौमासा किया। यहां पर ग्यारह रंगिया आदि खा धर्म ध्यान हुआ। चौमासे में सालाजी ने शास्त्रोद्धार का कार्य प्रारम्भ करवाया। श्री अमोलकऋषिजी महाराज ने सदैव एक समय भोजन कर के एवं ७-८ घंटे निरंतर लेखन पठन कार्य में लगाकर ३ वर्ष में ३२ ही शास्त्रों का हिन्दी भाषानुवाद करके लिख दिया । लाखाजी ने ४२०००) २० का संव्यय कर सब शाखों की १०००-१००० प्रति ५ वर्ष में अपवाकर सब स्थानों पर अन्य वितरण करवाई। हैद्राबाद सिंकद्राबाद में रहते हुए १५ वर्ष में इस सवा लाख सुरक्षा में अपस्य दी गई। इस बीच ० १९७२ फाल्गुन में श्री मोहनरामिषी म० की दीक्षा हुई। यह ग्रुपहनिराज ३ शाखा, १५ थोबड़े कंठस्थ करने पाये और संस्कृत व्याकरण तथा न्याय कोष आदि के पेत्ता थे। ये बड़े प्रभाषशाली हुए । किन्तु सं० १६७५ के चैत कृष्णा कमी को महान तपस्थी, श्रेष्ठ व्याख्यानी श्री देवऋषिजी और श्री मोहनऋषिजी दोनों ही एक ही रात्रि में स्वर्गस्थ हुए । सं० १६७४ के आश्विन में राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी भी स्वर्गस्थ हो गए।
शास्त्रोद्धार का कार्य समाप्त होते ही सं० १९७७ पौष शुक्ला २ को श्री अमोलकऋषिजी म. ठाणा ३ सहित हैद्राबाद से विहार करके शास्त्रज्ञ श्रावक नवलमलजी सूरजमलजी धोका की अनेक वर्षों से होती हुई विज्ञप्ति को स्वीकार कर कर्नाटक देश के यादगिरि ग्राम पधारे। वहाँ अनेक ग्रामों के श्रावक आए और विनती करके कर्नाटक में ही विचरने की स्वीकृति प्राप्त की। महाराज श्री ने कर्नाटक के अनेक ग्रामों में विचर कर जैन, वैष्मय, मुस्लिम, राजवर्गी आदि लोगों को धर्मप्रेमी बनाया । चौमासा रायचूर में किया, खूब धर्मोद्योत हुआ। वहाँ पर बड़े-बड़े राज्याधिकारी एवं प्रतिष्ठित पुरुष आपके दर्शनार्थ पाए एवं उपकार के अनेक कार्य हुए। महाराज श्री की कीर्ति से प्रभावित होकर बैंगलोर के ७० श्रावक श्राविका विज्ञप्ति के लिए पाए । श्रीमान् सेठ गिरधारीलालजी अन्नराजजी साँकला ने उस स्थान से विहार करने के पश्चात् बैंगलोर में विराजने तक तन, मन और थम