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________________ ३ निवेदन. श्रीजरामर जैन ग्रंथमाळानु २१९ पुस्तक प्राजे जैन नितामा चरणे धरतां अमोने खूब हर्ष थाय छे. प्रत्यार सुधीमां आ संस्था तरफथी या ग्रंथमालानां नाना मोटा २० वीस पुस्तको प्रसिद्ध थइ चूक्यां छे. जेनुं सूचिपन्न प्रा पुस्तकमा आपेल छे. ___ आगमो पैकी बहुजनमान्य अने प्रौपदेशिक चालु उपयोगी एवां वे सूत्रो-श्रीउत्तराध्ययन तथा दशवकालिक ने एकत्र करी "जैन सिद्धांत पाठमाळा " ए नामथी मात्र मूळपाठ [ दश वैकालिक संपूर्ण तथा उत्तराध्येयन आठ अध्ययन प्रथम अमदावादमा प्रसिद्ध थयेल तेनी नवी आवृत्ति वन्ने सूत्रो संपूर्ण तथा स्तोत्र संग्रह साथे या संस्था तरफीज प्रसिद्ध थयेल हती. ते श्रावृत्ति पण खलास थइ जवाथी गत चार्तुमास दरम्यान अने विराजता महाराजश्री नानचंद्रजी स्वामीने ते पुस्तकमा उपयोगी सुधारावधारा करी नवी आवृत्ति प्रगट करवानी अमारी वृत्ति अमोए जणावी. श्रा पाठमाळा संस्कृत छाया सहित वहार पडे तो वधु उपयोगिता जळवाशे एम तेश्रोत्रीने जणातां या ग्रंथने श्रावा स्वरुपे प्रगट करवा असगे भाग्यशाळी थया लीए. आयु मोटुं कार्य मात्र टुंक मुदतमांज छापीने तैयार करवामां प्रेस मेनेजरश्री हंसराजभाईनोसहकार पण कारणभूत के - छेवरे भावां अनेक प्रकाशनों माटे कविवर्य महाराजश्री नानचंगजी महाराजनो जेटलो हार्दिक उपकार मानीए तेटलो ओछो छे. तेश्रोश्रीनी कृपा प्रसादी संस्थानी उन्नतिमां अति अति सहाय्यक वनी छे अने अविच्छिन्न वनती रहो. सं. १९८६ ना ) कार्यवाहक मागशर शुद १५ । श्रीअजरामर जैन विद्याशाळा.
SR No.010006
Book TitleJain Shiddhanta Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherAjaramar Jain Vidyashala
Publication Year1989
Total Pages427
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size13 MB
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