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श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह पंचम श्रीजयवान विनयलालस षष्ठम भनि। सप्तम जयमित्राख्य सर्व चारित्रधाम गनि ॥ ये सातों चारणऋद्धिधर, करू तासपद थापना। में पूजूं मनवचकायकरि, जो सुख चाहूं आपना॥ ओं ह्रीं चारणऋद्धिधग श्रीमप्त ऋषीश्वग ! अत्र अवतरत अवतग्त मंत्रीपद श्राहाननं । अत्र तिष्ठत निष्ठन ठः ठः स्थापनं । श्रत्र मम सन्निहिना भवन भवन वपट मन्निधिकरणम ।
अष्टक - गीता छन्द। शुभतीर्थउद्भव जल अनूपम मिष्ट शीतल लायकै । भवतृषा-कंद निकंदकारण, शुद्ध घट भरवायके ।। मन्वादिचारण ऋद्धिधारक, मुनिन की पूजा करू। ता करें पातिक हरें मारे, मकन आनन्द विस्तर ॥१॥ नों ह्रीं श्रीमन्व. स्वरमन्त्र. निच य. मर्वमुन्दर. जयवान. विनयलालस जयमित्र ऋषिभ्या जलं निर्वपामा नि स्वाहा ।।१।। श्रीखंड कदलीनंद केशर, मंद मंद घिमायके । तसुगंध प्रसरित दिगदिगंतर, भर कटोरी लायके ।। मन्वादिचारणऋद्धिधारक, मुनिन की पूजा करू। ता करें पातिक हरें सारे, सकल आनन्द विस्तरू ॥२॥ प्रां ह्रीं श्रीमन्वादिचारणऋद्धिधारकममऋषिभ्यः चंदनं निक