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________________ श्री जैन पूजा-पाठसंग्रह। प्रोद्यद्दिवाकरनिरंतरभूरिसंख्या, दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसोम्यां ॥३४॥ ओं ह्रीं कोटि भास्कर प्रभा मंडित भामंडल प्रानिहायमहिताय श्री परमादि जिनाय अर्घ ॥ ३४ ॥ स्वर्गापवर्गगममार्गविमार्गणेष्टः, सद्धर्मतत्कथनेकपटुस्त्रिलोक्याः । दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थ सर्व, भाषास्वभावपरिणामगुणः प्रयोज्यः ॥३५॥ श्री ही पलिल जलधर पटनगर्जिन ध्वनि याजन प्रमान प्रानिहाय सहिताय श्री आदि परमेश्वर राय अघ ।।३।। उन्निद्रहेमनवपंकजपुञ्जकांती. पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाभिरामौ ।। पादौ पदानि तव यत्र जिनेंद्र ! धत्तः, पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयंति ॥३६॥ ओं ह्रीं हम कमलापरि गमन देवकृतानिशाय महिताय श्रीश्रादि परमेश्वराय अर्घ ।।३।। इत्थं यथा तब विभूतिरभूजिनेंद्र. धर्मोपदेशनविधो न तथा परस्य ।।
SR No.010003
Book TitleJain Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prakash Jain Thekedar Delhi
PublisherMahavir Prakash Jain Thekedar Dehli
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size13 MB
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