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श्री जैन पूजा-पाठ मंग्रह।
१७५ चार कोडि अम पन्द्रह लाग्वं ।। दो हजार सब पद गुमशाग्वं ॥६॥ द्वादश दृष्टिवाद पनभेदं । इकसौ आट कोडिपनवेदं ॥ अड़सठ लाग्व सहस छप्पन हैं । सहित पंचपद मिथ्याहन हैं ॥७॥ इक सौ बारह काडि बग्वाना । लाग्न निरासी ऊपर जानो ॥ ठावन सहस पंच अधिकाने । द्वादश अंग सर्व पद माने ॥८॥ काडि इकावन आठ हि लाग्वं । सहस चुरासी छहसौ भाग्वं ॥ साढ़े इक्कीस शिलोक बताये। एक एक पदके ये गाये ॥६॥ जा वानीके ज्ञानमें, मूझै लोक अलोक । 'द्यानत' जग जयवंत हो, सदा देन हों धोक ॥ ओं ही श्रीजिनमुग्वादभवमरम्वनदिव्य महाघ निर्व.
दाहा।