________________
१६६
श्री जैन पूजा-पाठ संग्रह।
1
बिन उपदेश स्वयं वैराग, थुति लौकांत करें पगलाग नमः सिद्ध कहि सब व्रत लेहिं, बंद मुनिसुव्रत व्रत देहिं ॥ २० ॥ श्रावक विद्यावंत निहार, भगति भावसों दियो अहार । बरसी रतनराशि ततकाल, बंदों नमिप्रभु दीनदयाल ॥ २१ ॥ सब जीवन की बंदी छोर, रागद्वेष द्वे बंधन तोर रजमति तजि शिवतिय सों मिले, नेमिनाथ चंदौं सुख निले २२ || दैत्य कियो उपसर्ग अपार, ध्यान देखि आयो फनधार । गयो कमठ शठ मुख कर श्याम, नमो मेरुसम पारमस्वाम २३ || भवसागर जीव अपार, धरमपोतमें घरे निहार | त काढे दया विचार, वर्द्धमान बंद बहुबार ||२४|| दोहा |
•
चौबीसौं पदकमलजुग, बंदों मनवचकाय । 'द्यानत' पढ़े सुने सदा, सो प्रभु क्यों न सहाय ।
शांतिपाठ संस्कृत |
( शांतिपाठ बोलते समय दोनों हाथों से पुष्पवृष्टि करते रहे ) दोधक वृत्तं शांतिजिनं शशिनिर्मलवक्त्रं, शीलगुणव्रत संयमपात्रं । अष्टशतार्चितलक्षण गात्रं, नौमि जिनोत्तममम्बुजनेत्रं ॥ १ ॥