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श्री जन पूजा-पाठ संग्रह।
१४६ लक्ष्मी-निवाम मगेज उद्भव तथा सोम थकी झरे।
आमोद पावन मिष्ट अति चित अमी भंजन को हरे ॥ मो चारु रम नवेद्य कारन क्षुधा नाशन लाय ही। श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्र पूर्ज हृदय हरष उपाय ही ॥ ओं ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ. जन्म. तप. ज्ञान. निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय क्षुधारोगविनाशनाय नवदां निवपामीति स्वाहा। कनक दीप मनोज्ञ मणिमय भानु भासुर मोहने । तम नम ज्यों घन पवन नाम धूम-वर्जित सोहने । मम मोह निविड विध्वंस कारण लेय जिन ग्रह आयही। श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्र पूजं हृदय हरप उपाय ही ॥ प्रां ह्री श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भ. जन्म, नप. ज्ञान निवारण पंचकल्याण प्राप्राय माहांधकार गंगविनाशाय दापं निर्वपामीति म्वाहा। श्रीखंड अगर दशांग पम् कनक पायण भरें।
आमोदत अलिवृन्द आव गंजत मन को हर ॥ वमु कम दुष्ट विध्वंस कारण मंग अग्नि जराय ही। श्री पाश्वनाथ जिनेन्द्र पूज हृदय हरप उपायही ॥ ओ ही श्री पाश्वनाजिनन्द्राय गभ. जन्म. नप. ज्ञान. निर्वाण पंचकल्याणप्राप्ताय अष्टकमदहनाय धूपं निर्वपार्माति स्वाहा।