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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 98 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
हैं इसलिये प्रतिबिम्ब निर्मल करना है, तो ह्रदय सरोवर में फिटकरी डाल दॉ अहो! वीतरागवाणी की निर्मली तुम्हारे हृदय - सरोवर में प्रवेश कर जाये, तो जैसे तीर्थंकर - आत्मा को प्रत्येक जीव के प्रति साम्य - दृष्टि झलकती है; ऐसे ही तुम्हारी दृष्टि भी बन जायेगीं
भो ज्ञानी! लोक में अनेक दर्शन कहते हैं कि सर्वज्ञ नाम की कोई वस्तु नहीं, पर आचार्य समंतभद्र स्वामी ने उन सबसे बड़े प्रेम से पूछा है कि सर्वज्ञ नहीं है, तो 'आज' नहीं है या 'भरतक्षेत्र में ही नहीं है अथवा यह भी बता दो कि क्या भूत में भी नहीं हुये और भविष्य में भी नहीं होंगे? मना करने से पहले विवेक से सोच लेनां अहो! जिसके ज्ञान में त्रैकालिक पदार्थ ( द्रव्य, गुण, पर्याय) एक साथ झलकते हों, उसका नाम सर्वज्ञदेव है और जो त्रैकालिक - व्यवस्था को जानता है, उसे सर्वज्ञ कहते हैं सर्वज्ञ आज नहीं हैं, भरतक्षेत्र में भी नहीं है, लेकिन क्या सर्वज्ञ भविष्य में भी नहीं होंगे, भूत में भी नहीं थे? अरे! मेरा सर्वज्ञ तो तू ही बैठा हैं आपके सिर के पीछे क्या है आप बता सकते हो? यदि नहीं बता सकते तो आप सर्वज्ञ का त्रैकालिक अभाव कैसे कर सकते हो?
भो चेतन! आप सर्वज्ञ का त्रैकालिक निषेध बता रहे हो, इसका तात्पर्य तुम तो सर्वज्ञ बन गये और आपको सर्वज्ञ के कथन पर शंका हो रही है कि पंचम काल में तो सम्यकदृष्टि हो ही नहीं सकतां अहो! मत खोजने जाना कहीं मिथ्यादृष्टि को उसी का हाथ पकड़ लेनां क्योंकि जिनवाणी कह रही है कि मैं सम्यक्दृष्टि उसे कहता हूँ जो देव, शास्त्र, गुरु पर श्रद्धावान हैं आपकी दृष्टि में देव भी नहीं हैं, शास्त्र भी नहीं हैं, गुरु भी नहीं हैं और आप सबको मिथ्यादृष्टि कहते हो, अतः पहले मिथ्यादृष्टि आप स्वयं ही हैं, क्योंकि 'रयणसार ग्रंथ में लिखा है कि जो जीव पंचमकाल में सम्यक्त्व को नहीं मानता, धर्म- ध्यान को नहीं मानता, धर्मात्माओं को नहीं मानता, वह घोर मिथ्यादृष्टि हैं आज भी धर्म है, धर्मात्मा हैं, सज्जन हैं, सत्पुरुष हैं यदि नहीं होंगे तो भो ज्ञानी धर्मात्मा के बिना धर्म नहीं होता धर्म तभी तक है, जब तक धर्मात्मा हैं इसलिये जिसने यह कह दिया कि कोई धर्मात्मा नहीं है, तो आपकी दृष्टि निःशंक भी नहीं है; क्योंकि निःशंकित गुण कहता है कि सात तत्वों, जिनदेव और जिनवाणी पर कोई शंका नहीं है और निग्रंथों पर भी कोई शंका नहीं
हैं
भो ज्ञानी आत्माओ! यदि कोई जीव इस सन्मार्ग को प्राप्त करके भी उन्मार्ग में जा रहा है, हम उसे अनायतन कहते हैं ं आगम की दृष्टि में आयतन का सेवक सम्यकदृष्टि और अनायतन का सेवक मिथ्यादृष्टि है, अतः, पहले तू स्वयं पर निःशंक होना सीख लें क्या मालूम हमने व्रत लिया, हमसे पालन होगा कि नहीं? निःशंकता नहीं हैं आप मोक्ष की बात कर रहे हो, तो निर्मल दृष्टि, दृढ़ संकल्प, दृढ़ आस्था ही शास्ता का मार्ग हैं ऐसा जब निःशंक होता हो तब निःकांक्षित भाव उत्पन्न होता हैं जब तक निःशंक नहीं होगा, तो
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