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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 8 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
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62. मत करों नव कोटि सजीवों की हिंसा
पाँचवाँ पाप परिग्रह ममत्व का हेतु परद्रव्य हैं भोग नहीं, योग है निर्जरा का हेतु उभय परिग्रह के अभाव में फलती है अहिंसा भिन्न स्वारुपोहम कारण कार्य विशेषता करो रक्षा सम्यक्त्व रत्न की
करों भावों की विशुद्धि मार्दव व शौच धर्म से 71. वस्तु का स्वरुप है त्याग
मत बनों निशाचर छोड़ों रात्रि भोज साधना से साध्य की सिद्धि अणुव्रत के रक्षक सप्त शील छोड़ों रात्रि भोज
न करो अशुभ चिंतन, अशुभोपदेश 78. आत्मा का आत्मा से घात मत करो
त्यागो दू:श्रुति व द्यूत क्रीडा सामायिक है आत्म तत्त्व का मूल गुणों का स्थान है सामायिक निज में वास ही उपवास
पूजा करो, पूज्य बनों 84. ससशील
महाव्रतों में वास उपवास है न करो भक्षण अभक्ष्य का
करो सीमा में भी सीमा 88. पाप-पंक धुलता है अतिथि पूजा से
रत्नत्रय धर्म का आधार - पात्र दान 90. आहार दान अहिंसा स्वरुप
समाधिमरण (मृत्यु महोत्सव) 92. जन्म नहीं मरण सुधारों 93. सल्लेखना आत्मघात नहीं
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