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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 64 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
आत्मा के प्रदेशों में प्रवेश कर गयें आत्म प्रदेशों में कर्म प्रदेशों का, दूध में पानी की तरह एकमेक संश्लेष संबंध हो जाना ही बंध कहलाता हैं।
सर्वथा दोष मत देना;
वर्गणाएँ कभी कर्मरूप
ज्ञानी आत्मा ! यह देह
भो ज्ञानी! जैसे ही तूने राग भाव किया, मिथ्यात्व भाव किया, असंयम भाव किया, वह तुरंत वहीं के वहीं बंध को प्राप्त हो गयें यह दशा आपकी कर्म बंध की हैं इसलिये पुद्गल को अपने परिणामों को दोष देनां परिणाम तुमने नहीं किए होते तो पुद्गल कार्माण परिणित नहीं हुई होतीं योगीन्दुदेव स्वामी ने 'परमात्म प्रकाश, योगसार' में लिखा है- भो ही देवालय है, इसमें बैठा आत्म ब्रह्म ही तेरा परमेश्वर हैं जहाँ देव विराजमान हो उसे आप देवालय कहते हो, चैत्यालय कहते हो, मंदिर कहते हो भो चेतन तू मंदिर के बाहर चला जा, जितने पाप करना हो कर लेना, परन्तु जब तक देव-देवालय में बैठा है तब तक तू पाप बिल्कुल नहीं करना बस इतना नियम कर लो, कि जब तक देव-देवालय में निवास करेंगे, तब तक पाप बिल्कुल नहीं करेंगें
भगवान श्री आदिनाथ स्वामी
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