________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 581 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भगवान् कह रहे हैं कि मैंने कुछ नहीं कियां सर्वज्ञ की वाणी को गणधर परमेष्ठी ने प्राप्त किया, गणधर परमेष्ठी की वाणी को आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी ने, अमृतचन्द्र स्वामी की वाणी को आचार्य विराग सागर महाराज ने प्राप्त कियां अब जितनी जिसकी सामर्थ्य थी, बर्तन जितना था, उसी में से एक चुटकी मैं लेकर आयां इसमें मेरे (मुनि विशुद्धसागर) द्वारा अक्षरों की हानि हुई हो, पदों की या वाक्यों की हानि हुई हो तो, हे श्रुत देवता! आप मुझे क्षमा कर देनां माँ भारती के चरणों में बैठ आज सम्यक-वाचना की समाप्ति हैं ।
जिनवाणी-वाचना की स्थापना मंगलवार को और समाप्ति शनिवार को हो, तो अति प्रशस्त होती हैं शनिवार को लोग अच्छा नहीं मानते, परंतु शनि से धन नहीं मिलता, वीतरागता मिलती हैं आज माँ भारती के चरणों में वंदना कर लेना कि हे देवी! आपकी वंदना मैं इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि प्रज्ञाशील बनकर मैं दूसरे के साथ अपनी प्रज्ञा का चमत्कार दिखाऊँ, बल्कि आपके द्वारा प्रदत्त प्रज्ञा को प्राप्त करके चैतन्य-चमत्कार को प्राप्त हो जाऊँ इसलिए हमने माँ जिनवाणी का पान कियां आपने जितना सुना है, उसको आचरित करते जाना, दोहराते जाना, तभी कल्याण होगां
HITRA
FRENA
Staff
श्रमण लाप पाठावलि
आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागर जी महाराज
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com