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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 579 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
पाषाण में उत्कीर्ण हैं एक गोपिका मथानी को भाँज रही है, रस्सी को खींच रही हैं बस, पढ़ने वाले पढ़ लें यह है स्याद्वादमयी भाषां द्रोणगिरि पर्वत के ऊपर गुफा के बगल में एक छोटा सा कमरा हैं वहाँ जितनी कथाए ँ लिखी हैं, बड़ी गंभीर कथाएँ हैं कथा से आवाज निकलती हैं उनके चित्र भी संसार से भयभीत करने के लिए चित्रित हैं कि अहो! इस शरीर की यह दशा है, इसमें तुम राग कर रहे हों तपस्वी को शरीर तो हड्डी-पसली का पिण्ड ही दिखता है, जिससे स्वयं के शरीर से स्वयं में राग न बढ़ें उनके शरीर को देखकर दूसरों को भी राग न बढ़ें वहीं पर भगवान् गुरुदत्त स्वामी के चरण - चिह्न से अंकित गुफा हैं जिसमें सामायिक कर रहे आचार्य शांतिसागर महाराज के सामने शेर आकर खड़ा हो गया था, परंतु शेर के सामने शेर भी सिर टेककर चला गया यह चतुर्थकाल की घटना नहीं, पंचमकाल की घटना हैं साधक की वह मुद्रा ही स्यादवादअनेकांत की वाणी को बिखेर रही थीं यदि मैं सिंह से बच जाता हूँ, तो श्रेष्ठ साधक के रूप में निखरकर आऊँगा और श्रेष्ठ - साधना करूँगा यदि सिंह मुझे खा लेता है, तो भी एक श्रेष्ठ - साधना मेरे सामने आयेगी कि संयम से च्युत नहीं हुआं यदि वह मेरे शरीर का भक्षण भी करेगा, तो भी मेरे आत्मा के धर्म का भक्षण कहाँ कर सकता है? यदि उसने शरीर का भक्षण कर भी लिया, तो सामायिक करते-करते ही तो जा रहा हूँ संयम इसलिए तो धारण किया था कहीं बच गया तो भी श्रेष्ठ होगा, क्योंकि आगे साधना करूँगा अहो! स्याद्वाद अनेकांत भाषण की शैली नहीं है, साधना की निर्मल शैली हैं
भो ज्ञानी! जैनशासन तो अनादि से कह रहा है कि अग्नि में भी जीव होते हैं इसलिए ध्यान रखना, राजगृही में जो गर्म पानी के स्थान हैं वह श्रावक के लिए पीने के लिए शुद्ध नहीं, क्योंकि वहाँ उस प्रकृति के जीव आयेंगें उस पानी का प्रयोग मुनिमहाराज तो कर सकते हैं, पर श्रावक नहीं क्योंकि मुनिराज का तो आरंभी हिंसा का त्याग होता है, श्रावक को आरंभी हिंसा का त्याग नहीं होता हैं यदि कमंडल सूख जाता है और शौच आदि की बहुत बड़ी पीड़ा है, तो ऐसे स्थान से पानी ले सकते हैं, परंतु बाद में जितना बचेगा वहीं छोड़ेंगे, प्रायश्चित्त भी करेंगे, पर श्रावक तो ऐसे पानी का प्रयोग छानकर ही करेगा कुएँ, बावड़ी के जल में यदि सूर्य की किरण पड़ रही हैं, तो ऐसे पानी का प्रयोग मुनि महाराज कर सकते हैं, लेकिन सहज नहीं करेंगें यह उस समय का अपवाद - मार्ग हैं राजमार्ग तो यह है कि श्रावक ही कमंडल में पानी भरता हैं यह बातें मैं आपको इसलिए बता रहा हूँ कि कदाचित् आपके दिखने में ऐसा आ जाये तो यह मत कहना कि महाराज ने ऐसा क्यों कर लिया? ऐसी आगम की व्यवस्था हैं श्रावकों को तो यह भी निर्देश है कि आपने पानी उबाल कर रख लिया और चौबीस घंटे के बाद पानी बचता है तो वह उपयोग का पानी नहीं है, अभक्ष्य हैं उसी पानी को पुनः उबालकर प्रयोग नहीं कर सकतें
अहो मुमुक्षु ! जब तेरा आत्म-तत्त्व पर दृष्टिपात हो उस समय देह को गौण करना अन्यथा तुम भावुकता के साधु तो बन जाओगे, पर साधना के साधु नहीं रह पाओगें भो ज्ञानी! यह मोक्षमार्ग भावुकता का Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
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