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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 561 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
इसलिए समझ में नहीं आये तो वीतरागवाणी को हाथ जोड़ लेनां कह देना, प्रभु! क्षयोपशम मेरा भी बढ़े, लेकिन मेरी जीभ गलत कहने को कभी नहीं हिले, मेरे कान गलत सुनने को कभी न खुलें और मेरी आँखें असत्य देखने को कभी न खुलें।
अहो! कुंदकुंद आचार्य भगवान् न होते तो यह पुण्यवाणी कहाँ सुनने को मिलती? जो जिनवाणी में आनंद है, जो ज्ञान में आनंद है, वह संसार में कहीं नहीं हैं अज्ञानता ही दुःख का हेतु हैं पर ऐसा ज्ञान देने वाले वे आचार्य भगवान् , जिन्होंने मुझे परम्ज्ञान ही नहीं दिया, बल्कि मुझे तो तीनों दिये हैं अमृत ने अमृत परोस दिया है और उनकी वाणी को बताने वाले वे आचार्य भगवान् विराग सागर जी महाराज, जिन्होंने यह रूप न दिया होता तो स्वरूप का भान होता कैसे? रूप के अभाव में स्वरूप की प्राप्ति संभव भी तो नहीं होती हैं इसलिए, मनीषियो! भावना भाना कि, प्रभु! वही रूप मुझे प्राप्त हो, जो धरती के देवता कहलाते हैं उस परमहंस अवस्था की प्राप्ति संयम के माध्यम से होती है और उस संयम के विधाता आचार्य भगवान् हैं, उनके गुणों का हम सभी स्तवन करें
Dilwara temple
दिलवाडा स्थित श्री जैन मंदिर
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