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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 554 of 583 ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
मनीषियो! आचार्य भगवान् कह रहे हैं कि किसी पर करुणा करो या न करो, पर निज पर तो करुणा कर लेनां यदि कहीं विपरीत श्रद्धान हो गया तो तीर्थंकर महावीर स्वामी से पूछ लेना कि प्रभु ! तीर्थंकर होने के पूर्व आपको भी कितने भव भटकना पड़ा ? एक क्षण के विपरीत श्रद्धान से भी कभी संयम, ज्ञान, चारित्र को जड़ की क्रिया कहकर झूठा मत कह देनां अहो! जितने अंश में सम्यक्त्व है, उतने अंश में किंचित मात्र भी बंध नहीं है, क्योंकि श्रद्धा बंध का हेतु नहीं हैं श्रद्धा में जो शुभ उपयोग है, वह आपके पुण्य - आस्रव व बंध का हेतु हैं जितने अंश में राग है, उतने अंश में बंध होता हैं 'समयसार जी में आचार्य कुंदकुंद स्वामी कह रहे हैं कि राग ही कर्म का बंध करा रहा हैं हे जीव ! छूटना चाहता है तो विरागता की संपत्ति को स्वीकार करो, ऐसा भगवान जिनेन्द्रदेव का उपदेश हैं अतः जितने अंश में ज्ञान है, उतने अंश में बंध नहीं है; परंतु जितने अंश में राग है, उतने अंश में नियम से बंध हैं चारित्र को बंध का हेतु किसी भी जिनागम में नहीं लिखां चरित्र और चारित्र, इन दोनों शब्दों का अर्थ अलग होता हैं चरित्र यानि किसी व्यक्ति का जीवन परिचय और चारित्र यानि संयमं जिसका चारित्र निर्मल है, जितने अंश में संयम है, उतने अंश में बंध नहीं हैं इसलिए सम्यक्दर्शन, ज्ञान, चारित्र की ओर बढों राग छोड़ो, वीतरागता को अपनाओं
श्री चम्पापुरी स्थित बड़ा जिन मंदिर
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