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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 532 of 583 ISBN # 81-7628-131-
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'आत्म-रमणी में रमो'
हे चैतन्य! ब्रह्मस्वरूप ही तेरा वास्तविक स्वरूप है, और उसमें रमण करना ही उत्तम ब्रह्मचर्य हैं उत्तम ब्रह्मचर्य-धर्म ब्रह्मस्वरूप की ओर ले जाने की शिक्षा देता है कि तू स्वभाव का आश्रय ले एवं स्वभाव में रम, क्योंकि स्वभाव में रहना ही ब्रह्मचर्य हैं बह्म यानी आत्मां आत्मा में विचरण करना ब्रह्मचर्य हैं ब्रह्मचर्य-धर्म-शील में रहने की प्रेरणा दे रहा हैं शील यानी स्वाभाविक/प्राकृतिक स्वरूप में निवास करना वीर्य-रक्षा आत्मरक्षा हैं वीर्य-रक्षा ही परम हैं जिसने स्वशक्ति का नाश किया है, उससे बड़ा पापी अन्य कौन हो सकता है? वीर्य को नष्ट करना, स्वशक्ति को नष्ट कर, शारीरिक शक्ति से हाथ धोना हैं ब्रह्मचर्य धर्म के पालन से शरीर दृढ़ होता है एवं ज्ञान की वृद्धि होती हैं अब्रह्म का सेवन मानव के विवेकज्ञान को शून्य कर देता है, जिससे मानव अपना सर्वस्व नाश कर लेता हैं अब्रह्म अनेक रोगों का स्थान हैं जितने भी भारतीय संस्कृति में महापुरूष हुए, उन सभी मनीषियों ने ब्रह्मचर्य-धर्म पर बल दियां महाग्रंथों के सर्जक आचार्य भगवंत ब्रह्मशक्ति से अपने ज्ञान को रख सकें अब्रह्म महाहिंसा है, क्योंकि एक बार के कामसेवन से नवकोटि जीवों की हिंसा का उल्लेख निर्ग्रन्थाचार्यों ने किया हैं सोचो कि अब्रह्म-सेवन कितने जीवों का घात करता है, एवं विषय-लोलुपत का कारण हैं इसी वासना का ही दुष्परिणाम है-"भ्रूणहत्या' लोकलाज के पीछे पंचेन्द्रिय मनुष्यों की जान ली जा रही हैं कितना अब्रह्म छा गया? कुँवारी माताओं के द्वारा भी उन नवजात शिशुओं के टुकड़े-टुकड़े करके कचड़े की भांति टोकनी में रखकर फेंक दिया जाता हैं क्यो आप भगवान् महावीर,
ण, बुद्ध, गुरूनानक आदि के उपासक हो? यदि हो तो ऐसे कुकृत्य पर ध्यान दों ब्रह्मचर्य से जियों संतान पर पाबंदी लगाने की चर्चा सरकार भी करती हैं परिवार नियोजन का प्रचार बहुताधिक चल रहा हैं उन लोगों से मेरा कहना है कि यदि तुम्हारी माँ गर्भ में ही तुम्हारी हत्या करा देती तो क्या तुम दूसरे की जान लेने का प्रचार कर पाते? पाबंदी संतान पर नहीं, वासनाओं पर लगाओं फिर नहीं करना पड़ेगा नरसंहार का प्रचारं तुम्हें क्या मालूम जिन गर्भस्थ शिशुओं की हत्या कर दी जाती है वो राम, महावीर, कृष्ण, सीता, चंदनबाला-जैसी होनेवाली संतान परमात्मपद को पानेवाली हों ध्यान रखो! जो गर्भपात करता है, एवं करवाता है, वे दोनों ही अधोगामी नरसंहारक दानव हैं ऐसे दुष्कृत्यों को कर्मसिद्धांत एवं प्रकृति माफ नही कर सकती ऐसे कुकृत्य प्रकृति को पसंद नहीं आजकल अकाल, भूकंप, अतिवृष्टि, अनावृष्टि जैसी बाधाएँ दिखने में आ रही हैं, यह सब उन गर्भस्थ आत्माओं की पीड़ा, तड़फन, कराहने की आवाज का ही प्रभाव है, उनका श्राप हैं यदि प्रकृति के संतुलन को सुधारना है तो वासनाओं को संतुलित करो एवं मिथ्या प्रचार बंद करो कि जनता
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