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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 52 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
कुल्हाड़ी लिए आ रहा होगा, तब आप खड़े हो अनुभव कर रहे होंगे कि यह कुल्हाड़ी मेरे शरीर पर चलाई जायेगी, वेदना होगी कि नहीं ? उसकी वेदना को वही वेद रहा हैं भो ज्ञानी! कर्मफल-चेतना क्यों कही जा रही है? क्योंकि वहाँ से भाग भी नहीं पा रहा हैं ओले पड़ेंगे, तब भी वहाँ होंगे और गर्मी के थपेड़े पड़ेंगे, तब भी वहाँ होंगें दुनियाँ तेरी छाया में बैठकर ओलों से बच रही है, पर तू अपनी छाया से अपनी रक्षा नहीं कर पा रहा अर्थात् जब अशुभ कर्म का उदय होता है, तो तेरे भवन के नीचे अनेकों छाया में बैठ लेते हैं, पर तेरा भवन तेरे लिए मृत्यु का कारण होता हैं।
हे आत्मन्! तेरी छाया में कितने बैठे हैं ? हे वृक्ष! तेरी डालियों पर भी लोग बैठे हैं, पर तेरे ऊपर तो कुल्हाड़ी ही हैं जब एक-इंद्रिय पर्याय को तुम प्राप्त करोगे, उस समय सोचना कि मैंने "पुरुष को नहीं देखा
थां
घर में जब एक दातुन की आवश्यकता पड़ी थी, हमने पूरी डाली ही तोड़ कर फेंक दी थीं उस समय "पुरुष" नहीं देखा थां काश! वृक्ष भी ज्ञान-चेतना से भरा होता तो आज उठ कर चल देता या आपका हाथ पकड़ लेता कि यह मेरा शरीर है मनुष्य के शरीर में रहने वाला 'पुरुष' अपने स्वार्थ के पीछे पता नहीं कितने जीवों की पर्यायों को भोजन के रूप में, लेपन के रूप में, औषधि के रूप में उपयोग कर रहा हैं एक दिन के भोजन में कितनी हरी साग खाई है? गोबर के जीवों के साथ-साथ पता नहीं कितनी औषधि छिड़क करके, वह साग बनकर तेरी थाली में सजकर आयी हैं उन जीवों से पूछना, हे आत्मन्! यदि मैंने 'पुरुषत्व' को प्राप्त कर लिया होता, तो मैं थाली को नहीं देखता हे नाथ! वह दिन कब आये जब मुझे थाली न देखना पड़ें परम वीतरागी दशा में जाने वाला वह योगी थाली को देखकर बिलख रहा है, किंतु भोगी जीव थाली को देखकर मुस्करा रहा हैं इतना ही योगी और भोगी में अंतर हैं मत होना गद्गद, कि थाली सज कर आयी हैं अरे! उस खेत को देखो जो थाली-सा चमक रहा था हरा-भरा, उसने उजड़कर तेरी थाली भरी हैं प्रकृति की थाली उजाड़कर तुमने अपनी थाली भरी हैं भो ज्ञानी आत्माओ! दूसरों की प्रकृति को उजाड़कर अपनी थाली भरने का प्रयास मत करना, यही तेरी अज्ञान दशा हैं भोगों में लिप्त होने का नाम ज्ञानचेतना नहीं, अज्ञानभाव हैं कुंदकुंद स्वामी ने 'पंचास्तिकाय' ग्रंथ में ज्ञान-चेतना केवल सिद्धों में कही हैं
सव्वे खलु कम्मफलं थावर-काया तसा हि कज्जजुदं पाणित्त-मदिक्कंता णाण विदंति ते जीवा 39
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