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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 518 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 ग्रंथियों को विकृत कर देते हैं, जिससे ग्रंथि-तंत्र निश्क्रिय हो जाते हैं, जिस कारण से जैविक शक्ति कमजोर पड़ जाती है, मस्तिष्कतंत्र असंतुलित हो जाते हैं इन सबकी सुरक्षा एवं संतुलन के लिए क्षमा व सहनशीलता की परम आवश्यकता होती है, क्योंकि इन सब विकृतियों को कंट्रोल करने की अनुपम शक्ति क्षमाशीलता हैं एकता, मित्रता, सबन्धुता तभी तक हैं, जब तक क्रोधानल नहीं भड़कती क्रोध वह आग है, जिससे सब गुण खाक हो जाते हैं अतः, हे योगी! क्रोध नहीं, क्षमामृत का पान कर, क्योंकि सुखों की खान क्षमाधर्म ही हैं क्रोध का न आना मात्र क्षमा नहीं हैं क्षमा का तात्पर्य है-कालुष्यता का अभावं अंतरंग में कलुषित भाव भी नहीं होना, क्षमाधर्म का प्रथम सोपान है और यह संकेत देता है कि यदि तेरे प्रथम सोपान है, तो अंतिम को प्राप्त करके तू मोक्ष-मंजिल को तय कर सकता है, अन्यथा नहीं क्रोध करना तेरा स्वभाव नहीं जो क्रोध करता है, वह स्वात्म का स्व के द्वारा ही घात करता हैं यदि तेरी रक्षा करने वाला कोई है, तो क्षमा से युक्त तेरी आत्मा को शरण रक्षक हैं वास्तव में उत्तम-क्षमा रत्नत्रयधारी के ही होती हैं पर इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सामान्य लोगों को क्रोध करना चाहिए, यानी क्षमा धारण नहीं करना चाहिएं नहीं, उन्हें भी क्षमाधर्म पालन करना चाहिएं ध्यान रखों क्षमा निर्बलों का धर्म समझना महामूर्खता हैं क्षमाधर्म, निर्बलों का नहीं, वीरों का हैं क्षमा धारण करने के लिए आपको आत्मशक्ति के साथ शारीरिक शक्ति चाहिएं नीतिकारों ने कहा भी है "क्षमा वीरस्य भूषणम्" क्षमा वीरों का आभूषण है, कायरों का नही शारीरिक बल आपके पास नहीं था और आपने यह कह दिया कि अमुक के लिए क्षमा कर दिया, तो यह क्षमा नहीं कहलाएगी क्षमा तो वहाँ है, जहाँ पराभव करने की शक्ति भी आपके पास है, और क्रोध के कारण की उपस्थिति है, फिर भी क्रोध नहीं करना आचार्य भगवान् कुंदकुंद स्वामी ने महान नीति ग्रंथ 'कुरल-काव्य' में क्षमाधर्म की महिमा का वर्णन करते हुए लिखा है "तप करते जो भूख सहे, वे ऋषि उच्च महान क्षमाशील के बाद ही, पर उनका सम्मान" Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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