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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 499 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 लिए फल रख जाये, लेकिन महाराज का त्याग था, इसलिये उन्होंने नहीं लिया अथवा उस दिन पड़गाहन नहीं हुआ और आपको चौका बंद करना था तो बताओ क्या करोगे? स्वयं निर्माल्य खाओगे कि दूसरे को खिलाओगे? यदि दूसरे को खिलाओगे तो क्या दूसरे को निर्माल्य खिलाने में तुमको पुण्य मिलेगा? इसीलिए मैं आपको विधि बता रहा हूँ बिल्कुल नहीं घबराओं उससे पहले ही सब विधियाँ उससे पूछ लेना-भैया! आवश्यक नहीं कि महाराज यह लेंगे, इसके बाद इसका क्या होगा? तो वह स्वयं कह देगा, कि भैया! हम तो देकर जा रहे हैं, आप इनका उपयोग कर लेनां इस प्रकार उसमें दोष नहीं हैं भो ज्ञानी! सचित्त पदार्थ पर रखकर देना या कच्चे पानी आदि से बर्तन धो लिया, और उस पर कोई भोजन सामग्री रख ली और दे दी अथवा स्वयं कच्चे पानी से हाथ धोकर आ गये और सामग्री तुरन्त उठा ली, ऐसा करना दोष हैं इसी प्रकार तुरन्त ही आपने कच्चे पानी से बर्तन को धोया और बटलोई पर रख दिया, तुम्हारी पूरी सामग्री अशुद्ध हो चुकी हैं 'कालस्यातिक्रमणं' भी बहुत बड़ा दोष है कि बिठा लो महाराज को, अपन दूध थोड़ा ठंडा कर लें अहो! एक कायोत्सर्ग-प्रमाण साधु खड़ा रह सकता है, इसके बाद भी यदि उनकी अंजुली पर तुमने कुछ नहीं रखा, तो वह सहजभाव से अंजुली छोड़ देंगें वहाँ तुम्हारे सामने जो शुद्ध वस्तु है उसे दे दो, लेकिन ऐसा नहीं है कि रुक जाओ, हमें शुद्धि कर लेने दो, फिर हम आपको देंगें चौके में भी खाली रूप से एक कायोत्सर्ग-प्रमाण ही बैठ सकते हैं प्राचीनकाल में जंगलों से आते थे, यदि चाण्डाल के यहाँ प्रवेश हो जाता था, तो अन्तराय आता था, क्योंकि आपके आँगन तक तो महाराज बिना पड़गाहे भी जा सकते हैं आगम की विधि है कि जहाँ तक जन-सामान्य जा सकते हैं, वहाँ तक साधु जा सकते हैं प्रश्नचिह्न नहीं लगाना? नौका में भी बैठ सकते हैं ऐणिक नाम के मुनिराज को नौका में बैठे-बैठे केवलज्ञान हुआं यदि घुटनों के नीचे तक पानी है, तो मुनिराज पानी में भी जा सकते हैं लेकिन वहाँ से जाकर सिद्ध-भक्ति आदि करके उसका प्रायश्चित्त करते हैं दीप्तिमान सूर्य Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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