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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 497 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 गयां दोनों सुत एक ही माँ के थे, परन्तु एक मदिरा में स्नान कर पाप कमा रहा है, दूसरा मदिरा को स्पर्श करने में पाप मान रहा हैं मनीषियो! ध्यान रखना, ब्रह्म स्वरूप भगवती आत्मा के दो पुत्र हैं एक का नाम शुभ-उपयोग है एवं दूसरे का नाम अशुभ-उपयोग हैं शुभ-उपयोग कहता है कि पाँच पाप का स्पर्श करना ही महा-अधमकारी हैं अशुभ-उपयोग कहता है कि पाँच पापों की लीनता ही परमात्म भाव हैं पर यह अज्ञानता ही समझों ‘समयसार' कहेगा कि दोनों बेटे अशुभ हैं शुद्ध तो एकमात्र शुद्ध-स्वभाव है अथवा शुद्ध तो केवल एक ही केवलज्ञान हैं अतः उज्ज्वल चारित्रवान के साथ रहोगे तो अंतरंग में कमजोरी नहीं होगी आप जब भी कमी महसूस करोगे तो दृष्टि सामने वाले की वृत्ति या उसके श्रेष्ठ चारित्र के पास जाती है, तब तुमको फीका महसूस होगा, तो आपके भाव भी श्रेष्ठ बनेंगे कि अपन भी ऐसा करें इसीलिए भगवन् कुन्दकुन्द स्वामी कह रहे हैं कि हीनाचरण के पास निवास मत करों पुष्प के सामने बैठोगे, तो सुवास ही प्राप्त होगी भो ज्ञानी आत्माओ! अमृतचन्द्र स्वामी यहाँ पर संकेत कर रहे हैं कि व्यक्तित्व को निखारने के लिए आपको व्यक्तित्व के पास पहुँचना पड़ेगां यदि परम् लक्ष्य की प्राप्ति करना है, तो अतिचारों में संतुष्ट नहीं होनां कुछ लोग इतने सन्तुष्ट हो जाते हैं कि अतिचार ही तो लगा, अनाचार तो नहीं हुआं हम सामायिक पर बारह बजे की जगह साढ़े बारह बजे बैठे हैं, अतिचार ही तो लगा हैं अहो! चिंता नहीं करो, कुछ दिन बाद आप इतने मस्त हो जाओगे कि आप एक भी बजाओगें मालूम चला कि काम बहुत जरूरी था, इस कारण एक बज गया, चलो मौन बैठ जाओ, वह काम और निपटा लों अब बताओ कि पहले दिन पाँच मिनिट लेट हुये थे, दूसरे दिन दस मिनिटं इस प्रकार पहले हम दूसरे काम निपटाने लगे, फिर सामायिक करने लगे भो ज्ञानी! ये कार्य मोक्ष-मार्ग नहीं हैं, सामायिक मोक्षमार्ग हैं ध्यान रखना, पाठ करने का नियम है, परन्तु भाव लग नही रहें अब इतनी उथल-पुथल है कि इधर सामायिक का समय हो रहा है, उधर पाठ भी करना है, क्योंकि नियम लिया है कि भोजन के पहले करना हैं अब क्या करोगे? अहो! मार्ग यह है कि पाठ रोज समय पर होना था, पर आज क्यों नहीं हआ? क्योंकि हमने अपने समय में कटौती की है, कोई दसरे काम उस समय पर किए हैं, अतः अब परिणाम अधमरूप हो रहे हैं मनीषियो! माँ जिनवाणी कह रही है कि ज्ञानियों के पास जाकर बैठ जाओ, तत्त्व-चर्चा करने लगो, जिससे वह काल चला जाये, वह काल समाप्त हो जाये और तुम्हारे परिणाम फिर सहज हो जायें ध्यान रखना, आपने अध्ययन किताबों में किया है, उसमें विवेक लगाकर काम करना एक शिष्य बहुत सरल थां उसे गुरु ने पढ़ाया- बेटा! कोई सामग्री नहीं उठाया करों जी, गुरुदेव! नहीं उठायेंगें एक बार दोनों एक घोड़े पर माणिक मोती लेकर जा रहे थे रास्ते में उनकी थैली फट गईं गुरुदेव आगे बैठे हुए थे शिष्य ने देख भी लिया, परन्तु उसने मोती नहीं उठायें जब मुकाम पर पहुँचे तो Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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