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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 485 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"अतिचारों से बचो"
ऊर्ध्वमधस्तात्तिर्यक् व्यतिक्रमाः क्षेत्रवृद्धिराधानम् स्मृत्यन्तरस्य गदिताः पंचेति प्रथमशीलस्यं 188
अन्वयार्थ : ऊर्ध्वमधस्तात्तिर्यक् = ऊपर, नीचे और समान भूमि के किये हुए प्रमाण का व्यतिक्रमः = व्यतिक्रम करना अर्थात् जितना प्रमाण लिया हो उससे बाहर चले जाना क्षेत्रवृद्धिः= परिमाण किये हुए क्षेत्र की लोभादिवश वृद्धि करना और स्मृत्यन्तरस्य =स्मृति के अतिरिक्त क्षेत्र की मर्यादा कां आधानम् = धारण करना, अर्थात् मर्यादा को भूल जानां इति पंच= इस प्रकार पाँच (अतिचार) प्रथमशीलस्य = प्रथम शील के (अर्थात् दिग्व्रत के कहे गये हैं)
प्रेषस्य संप्रयोजनमानयनं शब्दरूपविनिपातौं क्षेपोऽपि पुद्गलानां द्वितीयशीलस्य पंचेति 189
अन्वयार्थ : प्रेषस्य संप्रयोजनम् = प्रमाण किये हुये क्षेत्र के बाहर अन्य पुरुष को भेज देनां आनयनं = वहाँ से किसी वस्तु का मँगानां शब्दरूपविनिपातौ = शब्द सुनाना, रूप दिखाकर इशारा करना और पुद्गलानां = कंकड़ पत्थरादि पुद्गलों कां क्षेपोऽपि = फेंकना भी इति पंच = इस प्रकार पाँच (अतिचार) द्वितीयशीलस्य = दूसरे शील के (अर्थात् देशव्रत के कहे गये हैं)।
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