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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 478 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"निर्माण से निर्वाण" प्रतिरूपव्यवहारः स्तेननियोगस्तदाहृतादानम् राजविरोधातिक्रम हीनाधिकमानकरणे चं 185
अन्वयार्थ : प्रतिरूपव्यवहारः = चोखी वस्तु में खोटी वस्तु मिलाकर बेचनां स्तेननियोगः =चोरी में सहायता देना, तदाहृतादानम् = चोरी की वस्तु को ग्रहण करनां च = और राजविरोधातिक्रम = राजा के प्रचलित किये हुये नियमों का उल्लंघन करना हीनाधिकमानकरणे = नापने तौलने के मान हीनाधिक करना
अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजे हैं भगवान शीतलनाथ स्वामी की यह त्रिकल्याणक भूमि हमें संकेत दे रही है कि 'निर्वाण' की प्राप्ति 'निर्माण' पर ही होती हैं जब तक निर्माण नहीं है, तब तक निर्वाण नहीं सूत्र को ध्यान रखना-अभाव के अभाव में सद्भाव कभी नहीं होता और सद्भाव के अभाव में अभाव भी नहीं होता हैं अभाव ही सद्भाव का ज्ञान कराता है और सद्भाव ही अभाव का ज्ञान कराता हैं भो ज्ञानी! असत्ता नहीं हैं तो सत्ता भी नहीं हैं जिसकी सत्ता है, उसकी पर्याय-दृष्टि से असत्ता भी हो जाती हैं जिसकी असत्ता है, द्रव्य-दृष्टि से सत्ता भी होती हैं
भो ज्ञानियो! आज भगवान शीतलनाथ स्वामी के निर्वाण-कल्याणक दिवस पर उस स्वरूप की सत्ता को समझने की आवश्यकता है, जिसको आचार्य भगवन् कुंदकुंद स्वामी ने समयसार जी ग्रंथ में लिखा हैं इस जीव ने कभी सत्ता को देखा, कभी असत्ता को देखा, लेकिन द्रव्य का स्वरूप सदा सत्य होता हैं जो निर्वाण' हुआ है, वह आत्मा का नहीं हुआ; जो निर्माण हुआ है, वह भी आत्मा का नहीं हुआं जिसे तुम निर्वाण कहते हो, स्याद्वाद वाणी उसे निर्माण ही कहती हैं आज आपको निर्वाण नहीं, पहले निर्माण ही करना हैं निर्माण और निर्वाण दोनों युगपत होते हैं जहाँ कर्मों का निर्वाण होता है, वहाँ सिद्ध-पर्याय का निर्माण होता हैं अहो! अशुद्ध पर्याय का निर्वाण होगा और सिद्ध पर्याय का निर्माण होगां जब तक हमारे अशुद्ध भावों का निर्वाण नहीं होगा, तब तक शुभ भावों का निर्माण भी नहीं होगा तथा शुभ भावों के निर्माण के अभाव में निर्वाण का मार्ग भी प्रारंभ नहीं होगां
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