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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 476 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 स्वतंत्रता का तो हरण किया है, अतः हिंसा हो रही हैं ध्यान रखना, हिंसक- जानवरों को पालना तो एक सामान्य जैन अव्रति भी नहीं करतां बालक जब तक आठ वर्ष का नहीं होता है, तब तक उसके पाप-पुण्य का फल माता-पिता को मिलता हैं जिसके घर में हिंसक जानवर पले हैं, उसकी हिंसा आदि का सारा दोष उसके मालिक को जाता हैं कबूतर-कबूतरी के बच्चे को अलग करने पर सीता के जीव को उसका परिणाम पति वियोग के रूप में सहना पड़ां इसी प्रकार जीवंधर ने जब मुनिराज से पूछा कि, प्रभु! मेरे जन्म के ही पूर्व पिता की मृत्यु हो गई और मेरी माँ मुझे श्मशान घाट में छोड़ कर चली गई, यह मेरे कौन से कर्मों का फल थां उस समय मुनिराज ने कहा था-जीवंधर! आपने अपने पूर्व पर्याय में एक बगुले के बच्चे को उसके माता-पिता से अलग किया थां उसका परिणाम वह कर्म का बंध आज तुम्हारी इस पर्याय में उदय में आया हैं अतः यह मत मान लेना कि आज का फल आज ही मिल जायें आज भी आ सकता है और अनेक भव के बाद भी उदय में आ सकता हैं इसीलिए किसी की स्वतंत्रता का हनन करना भी हिंसा हैं
कोई जीव स्वतंत्रता से विचरण कर रहा हैं उसकी स्वतंत्रता का हनन कर देना, बंधन हैं आपने रेल में कुली किया और कहा कि पचास पैसे और ले लेना, इतना सामान और लाद लों वह तो लोभवश लाद लेगा, लेकिन पीड़ा तो होगीं गजरथ चलते हैं तब इन धर्मात्माओं को करुणा नहीं आतीं उनको तो यह दिखता है कि मैंने एक लाख रुपए दिये, अतः परिवार और परिवार के रिश्तेदार लद रहे हैं श्रीजी विराजमान हैं, महावत हाथी के ऊपर अंकुश चला रहा है, हाथी आँखों में आँसू बहा रहा है, रथ खिंच नहीं रहा है, यह कैसी अहिंसा है? अभी एक रहस्य और खुला कि गजरथ में ये हाथी वाले हाथी के साथ बड़ा दुर्व्यवहार करते हैं गजरथ चलने के पहले एक बहुत बड़ा लकड़ी का पाटा कीले ठोककर एकांत में रख दिया जाता है और उसके ऊपर उस हाथी को जबरदस्ती चलवाया जाता हैं उसके पैरों में अन्दर कीले घुस जायें, जिससे कि ज्यादा दौड़ने न पाये, अन्यथा वह विचलित हो जायेगां उसको इतनी पीड़ा उत्पन्न करा दी जिससे वह सम्हल-सम्हल कर पैर रखेगा, इस प्रकार से चलाते हैं यह आपको सोचना है कि गजरथ में दूसरी फेरी में बैठ जाते हैं, तीसरी फेरी में बैठ जाते थे, परन्तु उसके प्राण तो नहीं लों बड़े-बड़े त्यागी-व्रती भी बैठ रहे हैं आज के जमाने में वैज्ञानिक-वाहन बहुत निर्मित हो चुके हैं अतः प्राणियों के वाहन पर बैठना तो बंद कर दों आप ताँगे पर बैठे हो, ऊपर से चाबुक लग रहा है, उसके मुख में लगाम लगा हुआ है और बेचारा ढो रहा है, जुता हुआ हैं जो धर्म क्षेत्र में आकर छल-कपट, मायाचारी करता हैं उनको ऐसे ही ताँगे में जुतना पड़ता हैं घर में चूहे ज्यादा हो रहे हैं सो पिंजरा लगा दिया और रोड पर छोड़ दियां बेचारे वाहनों में दब जाते हैं, उसके छोटे-छोटे बच्चे बिल में थे और दाना लेकर खिलाने आया थां अब बच्चे तड़प रहे हैं और आपने माँ को पिंजरे में बंद कर बाहर कर दियां अब बताओ उन जीवों का क्या होगा? वे तड़पते-तड़पते समाप्त हो
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