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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 464 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
पर पीड़ा होती हैं अतः पेट पर लगाते हैं और आवश्यकता दिखे तो उनके आहार में भी एकाध बूंद चला सकते हैं दुग्ध तो सल्लेखना वाले को देते नहीं, पर छाछ पेट को स्वस्थ रखने वाली वस्तु हैं इसलिए अंतिम समय में छाछ का उपयोग किया जाता हैं लेकिन मायाचारी वाला छाछ नहीं, क्योंकि दही में चम्मच घुमाकर तैयार की गई छाछ से तुम असमाधि करा दोगे, क्योंकि पित्त, कफ और वात बढ़ जाएगां अतः तक्र यानी पानी की तरह छाछ हों भो ज्ञानी! चार मुनिराज उनके पास बैठकर जिनवाणी सुनाते हैं पर ऐसे नहीं सुनाई जाती, जिस तरीके से आप लोग सुनाते हों आप लोग एकसाथ हल्ला करना शुरू कर देते हों छपक के सामने तुम पाठ और ढोलक-मजीरा शुरू कर देते हो, वह गलत हैं अहो! सुनाते-सुनाते उसको थोड़ा विश्राम भी दे दों आप स्वयं चिंतन करो कि एक घंटे से कुछ ज्यादा प्रवचन हो जाएँगे तो आप ऊब जाते हो, फिर वह क्षपक तो कितनी नाजुक अवस्था में है ? समाज में क्या चर्चा है, यह पता लगाने का काम चार मुनिराज करते रहेंगें क्योंकि लोगों के अंतरंग में कहीं भ्रम जाल उत्पन्न न हो जाए, जिससे इस सल्लेखना के बारे में उदासीनता बढ़े चार मुनिराज व्यवस्था के लिए छोड़ दिए जाते हैं, क्योंकि अनेक प्रकार के लोग आते हैं आचार्य सोमदेवसूरि ने लिखा है कि जो संयम से शून्य है, चारित्र पर श्रद्धान नहीं, ऐसे लोग असमय में आकर ऐसी बातें करते हैं कि शास्त्रार्थ की आवश्यकता पड़ जाएं अतः, वाद-प्रतिवाद करने के लिए, चार मुनिराज धर्म-उपदेश करेंगें शास्त्रार्थ वाले भिन्न होंगे, जो आगम कुशल होंगें धर्मोपदेश संवेगनीय व निर्वेदनीय भाषा में ही होगा और समाधि परक ही होगां चार मुनिराज उस सभा की व्यवस्था भी देखेंगें सभी व्यवस्थाएँ साधुओं के हाथ में ही होंगी चार मुनियों से कहा जा रहा है कि क्षपक के लिए किसी भी प्रकार का क्लेश न हो, उनके इष्टजन, मित्र आदि आते हैं तो उनको बाहर से ही संतुष्ट करनां क्योंकि कुछ लोग आते हैं, महाराज श्री नमोस्तु पहचान लिया? अरे! तुम्हें पहचानें कि अपने को पहचानें चार मुनिराज पुनः निर्देशन कर रहे हैं कि कहीं एक न सम्हाल पाए, तो दूसरा तैयार हैं चार मुनिराज रात्रि जागरण करेंग पर रात्रि जागरण करने वाले वे युवा नहीं होंगे, वे वृद्ध होंगे, गंभीर, धीर, निद्राजयी होंगे और एक समय भी क्षपक को खाली नहीं छोड़ेंगें आवश्यकता पड़ेगी तो रात में बोलेंगे भी, क्योंकि रात्रि में मौन रहना मुनि का कोई मूलगुण नहीं हैं मौन इसलिए है कि अहिंसा व्रत के पालन के लिए अनावश्यक न बोले, परंतु सल्लेखना के समय में वे क्षपक को संबोधन जरूर देंगें
भो ज्ञानियो! असयंमी लोग वसतिका में प्रवेश न कर पाएँ, इसलिए वहाँ चार मुनिराजों को खड़ा किया जायेगां असंयमी लोगों को क्षपक के पास नहीं भेजा जाएगां इस प्रकार भरत एवं ऐरावत क्षेत्र में 44 मुनियों की व्यवस्था है, पर विदेह क्षेत्र में 48 मुनियों की व्यवस्था हैं कम से कम दो मुनिराज तो होना ही चाहिएं एक मुनिराज सल्लेखना नहीं कराएँगे, क्योंकि वे आहारचर्या को कब जाएँगे? शौच क्रिया को कब जाएँगे? क्योंकि जब जाएँगे, तब क्षपक अकेला हो जाएगां एक समय भी क्षपक को अकेला नहीं छोड़ना हैं यह
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