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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 461 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
" सिद्धि का हेतु समाधि " यो हि कषायाविष्टः कुम्भकजलधूमकेतुविषशस्त्रैः व्यपरोपयति प्राणान् तस्य स्यात्सत्यमात्मवधः 178
अन्वयार्थ : हि = निश्चय करके कषायाविष्ट = क्रोधादि कषायों से घिरा हुआं यः = जो पुरुष कुम्भकजलधूमकेतु = श्वास निरोध, जल, अग्निं विषशस्त्रैः = विष, शस्त्रादिकों से अपने प्राणान् = प्राणों कों व्यपरोपयति = पृथक् कर देता हैं तस्य = उसके आत्मवधः = आत्मघातं सत्यम् = सचमुचं स्यात् = होता हैं
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश वर्द्धमान स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् सल्लेखना या सत्लेखना का कथन कर रहे हैं कि समीचीन रूप से कषाय और शरीर को कृश करते हुए जो विवेक पूर्वक मरण होता है, उसका नाम समाधिमरण हैं जिसने वर्तमान में शुभध्यान (धर्मध्यान,, शुक्लध्यान) किये हैं उसी का मरण समाधिमरण होता हैं लोगों ने समाधिमरण का अर्थ समझ लिया है कि धर्मक्षेत्र में किसी को रख देना अथवा उसे धर्मात्मा के पास बिठाल देना, इसका नाम समाधिमरण हैं अरे, यह तो व्यवहार दृष्टि हैं समाधिमरण यानि स्वयं के साम्यरूप परिणामों से युक्त होकर जो मरण है, उसका नाम समाधिमरण है और वह धर्म स्थान पर धर्मात्माओं के बीच में होता हैं किन्तु ध्यान रखना, जो समाधि में होगा, वही समाधिमरण करा सकता हैं एक सल्लेखना के लिये 48 निग्रंथों की आवश्यकता होती हैं अहो ज्ञानियो! वृद्धत्व से बड़ा कोई सखा नहीं, जो मृत्यु के पास ले जाता हैं अतः, वृद्ध-अवस्था आपसे कुछ कह रही है कि गर्दन झुक गई, कमर झुक गई, अब आप कषाय की कषाय को भी झुका दो तो समाधि हो जायेगी
भो ज्ञानी! सम्राट पद युवराज को राजा स्वयं देता है, इसी तरह आचार्य अपना आचार्य पद स्वयं दें देते हैं परंतु आप अपनी चाबी क्यों नही छोड़ रहे हैं? क्या नरक के द्वार को खोलने के लिये चाबी रखे हुए हो? तुम क्यों इस परिग्रह में बंधे हो? अहो! रत्नत्रय का प्रतीक जनेऊ भी डाल लिया है और उसमें तुमने चाबी लटका दी हैं यह चाबी का छल्ला नहीं था, यह रत्नत्रय- धर्म की याद दिलाने का प्रतीक थां भो ज्ञानी! जैसे आचार्य अपने चतुर्विध संघ को बुलाते हैं। ऐसे ही आप गृह त्याग करें अपने बेटों को बुलाओ और समाज को भी आमंत्रित करो और कहो कि आप के जीवन में मेरे द्वारा आपके अंतःस को जरा भी ठेस लगी हो, तो आज मुझे क्षमा कर देनां मैं अब अंतिम विदा की व्यवस्था कर रहा हूँ
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