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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 446 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
हैं वे सोचते हैं कि मैं नीच कुल में होता तो खुलेआम कुकर्म करतां यहाँ समाज का प्रतिबंध हैं समझ लो. तुम्हें नीच आयु का बंध हो गयां
भो ज्ञानी ! उस जीव से पूछना, जिसने योगी के मुख से णमोकार मंत्र सुनते हुए आखरी सांस ली हों बड़े-बड़े तपस्वी बिलख जाते हैं, पर अंतिम समय में कोई णमोकार मंत्र सुनाने वाला नहीं मिलतां एक वह तिर्यंच था जिसे राम ने पूर्व-पर्याय में णमोकार मंत्र सुनायां वह था सुग्रीव का जीव - बैल, जिसको मरते समय राम ने णमोकार मंत्र सुनायां इसलिए ध्यान रखना, कहीं तुम जा भी रहे हो, तो रुक जाना, उस व्यक्ति को णमोकार सुना देना, वह चूहा और चिड़िया ही क्यों न हों काम तो बाद में भी हो सकते हैं, पर हंस आत्मा निकल जाये तो वह हंस मिलने वाला नहीं मनीषियो ! लोभी कभी दान नहीं देतां नारी पूछे सँम से, का तुमरो कछु गिर गयों बोला- मेरा कुछ गिरा नहीं, मैंने किसी को कुछ दिया नहीं, पर मेरे तो दूसरे को लेते-देते देखकर ही प्राण खिसक रहे थे अरे ऐसा मत कर लेना कि कोई दान दे रहा है और तुम्हारे प्राण खिसक रहे हैं मत करो दानान्तराय कर्म का बंध यह लोभ कषाय उसे छोड़ने नहीं देतीं
भो ज्ञानी! कभी भी मुनि के उद्देश्य से भोजन मत बनाना, क्योंकि तुम शक्ति से ज्यादा बनाते हों बेचारा शक्ति से ज्यादा कर लेता हैं और यदि उसका नम्बर नहीं लगा, तो बेचारे को संक्लेषता होती हैं जिनवाणी में यह लिखा है कि श्रावकों को शुद्ध भोजन करना चाहिएं तुम आलसी हो गये हो जो कि तुम शुद्ध भोजन नहीं करतें मूलाचार में 'उद्दिष्ट' की परिभाषा यह है कि महाराज को यह मालूम न हो कि आज तुम्हारे लिए अमुक व्यक्ति के यहाँ जाना है और व्यक्ति को मालूम न हो कि आज महाराज को अपने यहाँ आना हैं अरे! न पात्र को मालूम होना चाहिए न दाता को मालूम होना चाहिए, इसका नाम 'अनुदिष्ट' हैं बताओ, कौन से मुनिराज आपके निमंत्रण पर आपके घर आते हैं ? यह महादोष है, ऐसा कर मत देना, विकल्पों में मत डालना पात्र नहीं मिले, कोई बात नहीं हैं आपने तो जो भाव भाए थे, उससे लोभ शिथिल हो रहा हैं दान क्यों दे रहे हैं आप ? ताकि महाराज भूखे न रहें ? अरे! तुम कभी मत देनां देखो, जब क्षयोपशम-कर्म का उदय होता है, तो चौबीस - हजार मुनियों के आहार हुए हैं कुछ लोग इसलिए मुनि नहीं बनते, कि सब ही मुनि बन गये तो आहार कौन देगा ? तुम्हें आहार की चिंता है तो मुनि बनना भी मत, लेकिन ध्यान रखना, तुम्हारे पुण्य का योग होगा तो जंगल में भी मिलेगा तुम यह कभी मत सोचना, कि मैं चर्या करा रहा हूँ जो आप सेवा कर रहे हैं, यह भी उनका भाग्य हैं आप दान अपने लोभ को शिथिल करने के लिए देना, क्योंकि दान देना अहिंसा है और जो दान नहीं देता, वह हिंसक हैं
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