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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 431 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भो ज्ञानी! इसीलिए जितना बन सके कम से कम श्रावक की वृत्ति का तो पालन करों कहीं आपके भाव मुनिराज बनने के बन गये, तो निर्मल मुनिवृत्ति का भी पालन कर सकोगें दयाभाव के संस्कार तो यहीं से प्रारम्भ होंगें जो फर्श को देखकर ही नहीं बैठ पा रहा, चटाई को भी देखकर नहीं बैठ पा रहा, उसके आगे के परिणाम क्या होंगे? बिछाने के बाद कोई चींटी प्रवेश कर गई हो, उसका क्या होगा? अब सोचना कि हम कितने प्रमादी हैं ? प्रमाद-योग से प्राणों का वियोग करना, इसका नाम हिंसा हैं
प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसात.सू.
मनीषियो! जब तक गलती का भान नहीं कराया जाये, तब तक जीव को संयम के प्रति बहुमान आ ही नहीं सकता इसीलिए संयम की बात मत करो, असंयम की बात करो कि हमारा असंयम कितना चल रहा हैं असंयम छूट जाये, उसी का नाम संयम हैं 'कथाकोष' में एक कथा आई है कि एक कन्या खेलते-खेलते मुनिराज के चरणों में आ गईं मुनिराज ने उस कन्या को आशीष दिया और कहा कि बेटी, तू पाप नहीं, पुण्य करनां वह कन्या एक विद्वान् की बेटी थीं विद्वान् ने सुना कि मेरी पुत्री ने मुनि महाराज से पाँच व्रत ले लिये हैं पंडितजी कहते हैं-बेटी! यह तो जैनियों के व्रत हैं, तूने क्यों धारण कर लिये ? चलो मैं चलता हूँ, छुड़ा के लाता हूँ देखना, एक ऐसा भी जीव है जो व्रत छुड़वाने जा रहा है, उसके पाप का उदय देखना और कुछ ऐसे भी जीव हैं जो व्रत दिलाने जाते हैं उनके पुण्य को देखना कन्या को लेकर चल दियां रास्ते में देखा कि एक आदमी को फाँसी पर चढ़ाया जा रहा था कन्या ने पूछा-पिताजी! इस आदमी को फाँसी पर क्यों लटकाया जा रहा है ? इस व्यक्ति ने एक व्यक्ति का घात कर दिया था, इसीलिए राजदण्ड में इसको फाँसी की सजा घोषित कर दी तो, पिताजी! मैंने महाराजश्री से पहला व्रत तो यह ही लिया था कि जीवन में किसी जीव का वध नहीं करनां पिताजी! यह व्रत छोडूं कि नहीं ? बेटी! ये व्रत तो अच्छा है, इसको तो रख लों चलो, बाकी चार व्रत छोड़ आओं आगे देखा कि एक व्यक्ति की जिहवा का छेदन किया जा रहा थां पता चला कि उसने राज्य के विरुद्ध भाषण किया, असत्य बोला, इसीलिए इसकी जिह्वा छेदी जा रही हैं पिताजी! मैंने भी यह व्रत लिया था कि मैं कभी झूठ नहीं बोलूँगी, किसी की चुगली नहीं करूँगी बेटी! यह नियम तो बहुत अच्छा हैं लेकिन तीन तो छोड़ दों आगे देखते हैं कि एक व्यक्ति के हाथ काटे जा रहे थे, क्योंकि इस व्यक्ति ने चोरी की थीं पिताजी! चोरी का तो मैंने भी त्याग किया था हाँ, यह भी उचित हैं आगे एक व्यक्ति को शूलों पर लिटाया जा रहा था इस जीव ने परांगनाओं का सेवन किया है, कुशील सेवन किया था; इसीलिए उसे दण्ड दिया गया हैं पिताजी! मैंने यही तो नियम लिये हैं कि मैं जीवन में कभी परपुरुष पर दृष्टि नहीं डालूँगी, कुशील का सेवन नहीं करूँगी बेटी! यह नियम भी बहुत श्रेष्ठ हैं अहो! आगे जाने पर एक
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