________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 345 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v- 2010:002
"करो रक्षा सम्यक्त्व - रत्न की "
माधुर्यप्रीतिः किल दुग्धे मन्दैव मन्दमाधुर्ये सैवोत्कटमाधुर्ये खंडे व्यपदिश्यते तीव्रा 123
अन्वयार्थ :
=
किल = निश्चय करं मंदमाधुर्ये दुग्धे = अल्प मिठास वाले दूध में माधुर्यप्रीतिः मंदा एव थोड़ी हीं व्यपदिश्यते कही जाती हैं सा एव उत्कट माधुर्ये खण्डे = खांड अर्थात् शक्कर में तीव्रा अधिक कही जाती हैं
=
=
=
मिठास की रुचि
वही मिठास की रुचि अत्यंत मिठासवालीं
तत्त्वार्थाश्रद्धाने निर्युक्तं प्रथममेव मिथ्यात्वम्ं सम्यग्दर्शनचौराः प्रथम - कषायाश्च चत्वारः 124
=
अन्वयार्थ :
प्रथमम् एव = पहले हीं तत्त्वार्थाश्रद्धाने = तत्त्व के अर्थ के अश्रद्धान में जिसें निर्युक्तं = संयुक्त किया हैं
मिथ्यात्वम् च = मिथ्यात्व को तथां सम्यगदर्शनचौराः सम्यग्दर्शन के चोरं चत्वारः = चारं प्रथम कषायाः = पहले कषाय ( अर्थात अनंतानुबंधी क्रोध, मान माया, लोभ) हैं
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने आत्मा के अविनाशी स्वरूप की ओर संकेत दिया है कि आत्मा का स्वरूप पूर्ण निर्लिप्त है, असंग हैं अर्थात् जिसमें कोई संग नहीं है, वह आत्मा का वास्तविक स्वरूप हैं लेकिन राग की दशा के कारण इस जीव ने पर-द्रव्य को इतना स्वीकार कर लिया है कि मैं इससे भिन्न ही नहीं हूँ अहो ! विजाति-धर्म में सुजाति को मान बैठा, यही तत्त्व की सबसे बड़ी भूल हैं जब तक यह भूल नहीं सुधरेगी, तब तक छोटी-छोटी बातें महत्वहीन होती जायेंगीं यदि एक व्यक्ति अनशन - तप करता है और वह बहुत साधना भी करता है, परन्तु शील का पालन नहीं कर रहा है और वह करोड़ों का दान भी कर देता हो, लेकिन लोगों की दृष्टि में वह सम्मान का पात्र नहीं हो सकतां धीरे से पत्नी पूछती है- स्वामी! आज यह प्रकोप किस बात पर है ? राजा कहता है— मेरे राज्य में परनारी सेवी हो, यह कैसे संभव है ? मुस्कराकर रानी पूछती है - प्रभु! आप इसको कौन सा दंड देना चाहते हो ? राजा उत्तर देते हैं-आज मैं उसको फाँसी की सजा सुना रहा हूँ रानी ने भी कह दिया- प्रभु! पहले आप दो फँदे तैयार करवा लेना, क्योंकि आप भी परनारी-सेवन के इतने ही दोषी
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com
For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com