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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 340 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"कारण कार्य विशेषता"
एवं न विशेषः स्यादुंदुरुरिपुहरिणशावकादीनाम्
नैवं भवति विशेषस्तेषां मूर्छा विशेषेणं126 अन्वयार्थ : एवं = यदि ऐसा ही हैं उन्दुरुरिपुहरिणशावकादीनाम् = बिल्ली तथा हरिण के बच्चे आदिकों में विशेष :न स्यात् = कुछ विशेषता न होवें एवं न भवति = ऐसा नहीं होतां मह्यं विशेषण = ममत्व परिणामों की विशेषता सें तेषां = उन (बिल्ली तथा हरिण के बच्चे) की विशेषः = विशेषता हैं
हरिततृणांकुरचारिणि मन्दा मृगशावके भवति मूर्छा
उन्दुरुनिकरोन्माथिनि मार्जारे सैव जायते तीव्रां121 अन्वयार्थ : हरिततृणांकुरचारिणि = हरे घास के अंकुर चरनेवाले मृगशावके = हरिण के बच्चे में मूर्छा मन्दा भवति = मूर्छा मन्द होती हैं सा एव = वही मूर्छा उन्दुरुनिकरोन्माथिनि = चूहे के समूह का उन्मथन करनेवाली मार्जारे तीव्रा जायते = बिल्ली में तीव्र होती हैं
निर्बाधं संसिध्येत कार्यविशेषो हि कारण विशेषातं
औधस्यखण्डयोरिह माधुर्यप्रीतिभेद इवं122 अन्वयार्थ : औधस्यखण्डयोः = दूध और खांड में माधुर्यप्रीतिभेद इव = मधुरता के प्रीतिभेद के समानं इह हि = इस लोक में निश्चयकरं कारणविशेषात् =कारण की विशेषता से कार्यविशेषः निर्बाधं =कार्य का विशेषरूप बाधारहितं संसिध्येत् = भले प्रकार सिद्ध होता हैं
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी ने अनुपम सूत्र प्रदान किया है कि जीवन के सत्य को समझने के लिए तटस्थ होने की
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