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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 291 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
ले, लेकिन एक दिन के उन बादलों को हटना ही पड़ता हैं हे मेघ! तुम कब तक ढंकोगें पर ध्यान रखना एक बात को कि जो सत्य को ढंकता है, उसका चेहरा काला ही होता हैं मेघ जब सूर्य को ढंक लेते हैं तो स्वयं काले होते हैं कोई अपराध करके आता है तब उसका चेहरा देखनां जो सत्य-हृदय होता है, तो उसका काला चेहरा भी खिला होता हैं असत्य की सफेदी मुरझाई होती हैं अतः सत्य सिद्धांत का प्रकाश करने के लिए बिना पूछे भी आपको बोलना चाहिए, ऐसा 'ज्ञानार्णव' में आचार्य शुभचन्द्र स्वामी ने लिखा हैं सम्यकदृष्टि जीव अपने चिंतन को आगम नहीं बनाता, सम्यकदृष्टि जीव आगम के अनुसार अपना चिन्तवन बनाता हैं ध्यान रखना, चिन्तवन को आगम के अनुसार बनाकर चलना और अपने चिन्तवन से आगम को तो उठाना, पर अपने चिन्तवन को उठाने के लिए आगम की बलि मत चढ़ा देनां आजकल यह हो रहा है कि अपनी बात पुष्ट करने के लिए कहीं की गाथा छाँट ली और कि दिया-देखो, आगम तो ऐसा हैं कहीं की भी एक गाथा उठाओगे तो आप भी वह सिद्ध करके बता सकते हों लेकिन यह ध्यान रखो कि सूत्र सोपस्कार होते हैं यानि कि पूर्व के विषय को लेकर चलता हैं अब देखना, मोक्षशास्त्र (तत्वार्थसूत्र) में 'नाणो' सूत्र क्या कह रहा है? इसको संस्कृत व्याकरण से देखो कि इसका अर्थ क्या निकलता है? आप तो एक अर्थ निकालोगे-न:+अणु अर्थात् अणु नहीं होता है, तो आपने पूरा सिद्धांत समाप्त कर दियां जबकि अर्थ क्या निकलता था? कि इस सूत्र के पहले का सूत्र क्या कह रहा, उसको देखिएं 'नाणो' सूत्र कह रहा है कि अणु बहुप्रदेशी नहीं होता, परंतु आपने अर्थ निकाला कि अणु ही नहीं होता हैं इसी प्रकार 'न देवो जिसको देवों से ईर्ष्या हो, सो यह सूत्र निकालकर रख दिया कि 'तत्वार्थ सूत्र' प्रमाण हैं प्रमाण तो दे रहे हो, पर विवेक तो लगाओं देव नहीं होते हैं क्या? अहो! अस्ति को नास्ति कर रहे हों जबकि 'न देवो' का अर्थ है कि देव नपुंसक नहीं होतें 'देव' नियम से स्त्री या पुरुषवेदी ही होते हैं इसलिए ध्यान रखना, जब तक सूत्र को दस बार आगे पीछे नहीं देख लोगे, तब तक आप सूत्र-ज्ञाता नहीं बन सकतें अहो! विद्वानों को पहले अन्य विद्वान् संस्कार देते थें आपने देखा होगा कि एक गाड़ी-चालक भी बगल में बैठकर दूसरों को सिखाता हैं इसी प्रकार आचार्य भी अपने शिष्य को सीधा आचार्य नहीं बनाते, पहले बिना किसी विधि के बगल में बिठाते हैं, फिर कहते हैं कि देखो, हम कैसे संघ का संचालन कर रहे हैं,? कैसे प्रायश्चित देते हैं? कैसे समझाते हैं? इसके उपरांत ही बालाचार्य बनायेंगें जब देख लेंगे कि यह ठीक-ठाक है, तो फिर उनको आचार्य बना देंगें यदि बिना अभ्यास के और बिना सामर्थ्य के कोई डाक्टर बन जाये, तो वह क्या करेगा? कितनों को असमय में विदा कराएगा? आचार्य वैद्य हैं, जो संसार में जन्म, जरा, मृत्यु से पीड़ित रोगियों को रत्नत्रय-धर्म की औषधि देनेवाले हैं अतः, यदि आपके अंदर योग्यता नहीं है, तो प्रार्थना कर लेना, प्रभु! सामर्थ्य नहीं हैं
भो ज्ञानी! कटनी के पास तेवरी गांव में सुधर्मचंद जी नाम के अच्छे ज्ञानी व्यक्ति हैं कुशल वक्ता हैं वहाँ पंचकल्याणक हुआ, तो उन्होंने बाहर से विद्वान् बुलायां मैंने पंडित जी से एकांत में पूछा-पंडितजी! आप
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