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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी
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पुरुषार्थ देशना परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 271 of 583
ISBN # 81-7628-131-3
v- 2010:002
भो ज्ञानी शरीर को स्वछ करना चाहते हो तो अध्यात्म से आई होना पड़ेगां गहराई में जाए बिना भोगों से अरुचि हो ही नहीं सकतीं सर्वज्ञदेव कहते हैं कि आपको शुद्धात्मा में रुचि हो जायेगी धर्म में भी रुचि हो जायेगी, यदि आपने भोगों से अरुचि उत्पन्न कर ली और योग में रुचि लगीं नही तो तेरी दशा क्या होगी? क्योंकि भोगों से बलात् अरुचि उत्पन्न करके ही योग में रुचि लगती हैं अहो! उपयोग तो तेरा बाहर ही बाहर में घूमता हैं यदि अन्तरंग की रुचि हो जायेगी, तो बाहर अपने आप अरुचि हो जायेगीं वैराग्य राग नहीं है और वैराग्य में भी राग नहीं हैं वैराग्य जिस क्षण आता है उस क्षण राग के जितने क्षण होते हैं वे सब राखरूप झलकते हैं रागी को राख में भी राग होता है और वैरागी को रागमयी द्रव्य में राख झलकती है, लेकिन राग शाश्वत नहीं राग की परिणति नियम से बदलेगी और राग का द्रव्य भी बदलेगा, यह वास्तविकता हैं जिसे आप अपना बेटा कह रहे थे, सुंदर लगता था, वह जब युवावस्था से प्रौढ़ावस्था में प्रवृत्त होता है तो वही आपको फीका फीका लगने लगता हैं
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भो ज्ञानी! अन्तरंग में अनादि से वासनाओं की जो लघार लगी हुई है, कषाय भाव बैठे हुये हैं, वे कैसे समाप्त हो? यदि आप अपने आपको कुछ समय देना शुरू कर दोगे तो विश्वास रखना कि नियम से आपको अपने द्रव्य का भान होगा, अन्यथा जीवनभर धर्मस्थान में बैठे- बैठे निकल जायेगा, लेकिन आप कभी भी धर्म का अनुभव नहीं कर पाओगें जैसे तीर्थराज सम्मेदशिखर शाश्वत निर्वाणभूमि में बैठे प्रबंधक से पूछना कि वह सम्मेदशिखरजी की अनुभूति कितने क्षण करता है? अहो! उसने अपना दिमाग खाली छोड़ा ही नहीं, उसके पास समय ही नहीं हैं जब आप धर्मात्मा बनकर जिनालय आते हो, तब भगवान् के दर्शन का आनंद आता हैं किसी को भगवान् के दर्शन छुड़वाना हो तो मंदिर की समिति का मंत्री बना दो वह जब भी मंदिर जायेगा. तो पहले भगवान् को नहीं, जमीन को देखगा कि झाडू लगी कि नहीं, ईंटों में क्या हो रहा है? अब उसके वह भगवान् चले गयें
भो झानी ! डाकू मुनि बन गयां सुंदरियों का राग उन्हें डिगा नहीं पायां जिसको आत्म-सुन्दरी नजर आती है, उसको पुद्गल की सुंदरियाँ दिखती ही नहीं हैं भो ज्ञानी! अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं- कभी भूलकर भी हिंसा को धर्म नहीं कहना, राग को धर्म नहीं कहना, शिथिलाचार को भी धर्म नहीं कहना और असंयम को धर्म नहीं कहनां धर्म असंयम नहीं, धर्म संयम हैं पॉलिश कभी सोना नहीं बनेगा, सोना ही सोना होगां पॉलिश तो उतर जायेगीं इसीलिए ऊपरी चमक से प्रभावित होकर भीतर खोखले मत हो जानां ऊपरी चमक वाली संसार की विभूतियाँ अन्दर का शुभत्व नहीं हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि अन्दर जो कुछ है, उसका नाम परम अहिंसा हैं लोक में जितने दर्शन हैं, सब अपनी बात कर रहे हैं लोगों की कैसी कल्पना थी कि दूसरे का सिर फोड़ दो तो उसका मोक्ष हो गयां अब पंचमकाल में सिर तो नहीं फोड़ा जा रहा, पर श्रद्धा के सिर तोड़े जा रहे हैं आयतनों से हट गये हैं, अनायतनों में जाने लगे हैं मंगल आयतन तो आगम में चार
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