________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 253 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भो ज्ञानी! जिस समय आपके परिणाम प्रभु-वन्दना के हों, जिनवाणी सुनने के हों, गुरुओं के पास बैठने के हों, समझ लेना आपकी लेश्या पीत हैं पीत-लेश्या प्रेम उत्पन्न कराती है; परिणामों को निर्मल बनाती हैं ये अशुभ नहीं, शुभ लेश्या हैं आचार्य अमृतचंद्र स्वामी कह रहे हैं कि अग्नि आप को प्रकाश दे रही है और पीत सोना भी आपको प्रकाशित कर रहा हैं सोने को इतना पीतत्व- भाव देनेवाली अग्नि हैं हे चेतन्य! तुझे पीला करनेवाली पीत-लेश्या ध्यान-की-अग्नि हैं कहीं सोने-चाँदी में खो मत जाना, लिखना हो तो लखकर ही लिखनां किसी भी आचार्य ने यह नहीं लिखा कि मैं दूसरों के लिए लिख रहा हूँ, प्रत्येक आचार्य ने पुस्तक के अन्त में यही लिखा-'परिणाम शुद्धयर्थम्, विषय कषाय वंचनार्थम्' विषय-कषायों से बचने के लिए और परिणामों की विशुद्धि के लिए मैं ग्रंथ का सृजन कर रहा हूँ मनीषियों जिस पदार्थ से स्वयं की परिणति में निर्मलता न हो वह दूसरे की परिणति को निर्मल कैसे करायेगा? हमारे परिणामों में जो निर्मलता उत्पन्न करा सकता है, वह दूसरे के परिणामों में भी निर्मलता का हेतु बन सकता हैं दिगम्बर आचार्यों की शैली तो देखो, पहले अनुभव किया, अनुभव सिद्ध करके जो पदार्थ आपको जिसने दिया है, उसके प्रति आपको सहज विश्वास होता हैं निग्रंथों की वाणी पर इसीलिए विश्वास होता है, क्योंकि उन्होंने लायी हुई नहीं दी, वेदन के बाद ही लिखा हैं आचार्य कुन्दकुन्द देव कह रहे हैं कि मैंनें अनुभव करके कहा है- कि एकत्व-विभक्त, चिन्मय-चैतन्य की जो दशा है, वही निर्मल हैं वही लोक में सबसे सुन्दर हैं एकत्व में कोई विसंवाद नहीं होतां द्वैत में ही विवाद होता है, अद्वैत में कोई विवाद नहीं हैं इसीलिए सबके बीच में रहना, परन्तु वेदन एकत्व का ही करनां यदि आप सबके साथ रहकर, सब को अपना मान बैठे, तो आचार्य अमृतचंद स्वामी फिर कहेंगे कि हिंसा समाप्त होनेवाली नहीं है, क्योंकि पर में परिणति को ले जाना ही हिंसा हैं
___ भो ज्ञानी! स्वानुभव करके कोई भी हिंसा नहीं कर पायेगां मुनिराज ने चोर को सोते समय वध नही करने का नियम दिलायां आप भी नियम ले लेना कि सोते हुए हम किसी का वध नहीं करेंगे, जागृत होकर करेंगें तुम निद्रा में नहीं सोये हो; मोह, राग, द्वेष में सोये हो; क्योंकि निद्रा का सोनेवाला इतना वध नहीं कर पाता, जितना राग-द्वेष का सोया हआ व्यक्ति वध करता हैं अतः, वध करने के पहले तनिक सी संवेदना को जन्म दे देना कि मैं वधिक हूँ, मैं हिंसक हूँ लोक में हिंसक की कितनी प्रशंसा होती है ? जिसका मैं वध कर रहा हूँ, उसकी वेदना कितनी हो सकती है ? मैं उसके प्राण हरण करने तो जा रहा हूँ, क्या मैं किसी को प्राण भी दे सकता हूँ? मनीषियो! जब तुम उत्तर प्राप्त करोगे, तो तलवार में वार नहीं दिखेगा, तुम्हें भेदविज्ञान मिलेगा कि मैं एक सिद्ध प्रभु के ऊपर तलवार उठा रहा हूँ वे भी तो सिद्ध-शक्ति से सम्पन्न हैं अहो! प्रभु पर वार कैसा? अतः, वध करने के पहिले संवेदना को जन्म जरूर दे देनां
भो ज्ञानी! अक्सर हिंसक विभूतिसम्पन्न देखे जा रहे हैं यदि वैभव हिंसा-का-फल हो गया तो अहिंसा
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com