________________
पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 229 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"शहद का सेवन भी हिंसा है" मधुशकलमपि प्रायो मधुकरहिंसात्मकं भवति लोकें भजति मधु मूढधीको यः स भवति हिंसकोऽत्यन्तम्
अन्वयार्थ : लोके मधुशकलमपि = इस लोक में मधु का कण भी प्रायः = बहुधां मधुकर हिंसात्मकं = मक्खियों की हिंसारूपं भवति = होता हैं यः मूढधीकः = जो मूर्खबुद्धि पुरुषं मधुभजति सः = शहद का भक्षण करता है वह अत्यन्तम् हिंसकः = अत्यन्त हिंसा करने वाला होता हैं
स्वयमेव विगलितं यो गृह्णीयाद्वा छलेन मधुगोलात् तत्रापि भवति हिंसा तदाश्रयप्राणिनां घाता।
अन्वयार्थ : यः छलेन वा = जो कपट से अथवां गोलात् = छत्ते में से स्वयमेव विगलितम् = स्वयमेव टपके हुएं मधु गृह्णीयात् = मधु या शहद को ग्रहण करता हैं तत्रापि = वहाँ भी तदाश्रयप्राणिनाम् = उसके आश्रयभूत जन्तुओं के घातात् हिंसा भवति = घात होने से हिंसा होती हैं
मनीषियो! आचार्य भगवान् अमृतचन्द्र स्वामी ने बहुत सुन्दर सूत्र दियां जीवन में तूने अनन्त क्षणों को अनन्त भोग के लिये समर्पित किया है, अनन्त पर्यायों को तूने कषायों को सौंपा हैं अहो! अल्प विचार तो कर कि हमने निज के लिए कितने क्षणों को दिया है, साधना को कितना समय दिया है? हे चेतन अनन्त-चतुष्टय की संपदा तेरे अन्दर भी है, फिर भी तू गरीब हैं अरे! हीन मान के चलोगे तो हीनता ही दिखेगी जिसकी परिणति में हीनता है, मनीषियो! वह कभी प्रभु नहीं बन पाएगां जिस स्थान को तुम चाहते हो, उस स्थान को सोचना तो पड़ेगा, यही द्रव्यानुयोग हैं द्रव्यानुयोग तुम्हारे संयम को नहीं मिटाता है, चर्या को नहीं बिगाड़ता, परिणति को नहीं बिगाड़ता हैं द्रव्यानुयोग तो तेरी 'प्रभुत्व-सत्ता' का भान कराता हैं आचार्य कुंदकुंद देव कह रहे हैं कि तू विभुत्व-शक्ति से समृद्ध हैं तेरी प्रभुत्व-शक्ति भी है, विभुत्व-शक्ति भी है और
Visit us at http://www.vishuddhasagar.com
Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com