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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 196 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! उनका कुष्ठ ठीक हो गया, तुम्हारे फोड़े-फुन्सी तक ठीक नहीं हो पा रहे हैं बात यह है कि सिद्धचक्र वही है, लेकिन परिणति तुम्हारी वैसी नहीं हैं मनीषियो! कुंदकुंदाचार्य महाराज ने 'अष्टपाहुड' ग्रंथ में लिखा है सुहेण भाविदं णाणं दुहे जादे विणस्सदिं तम्हा जहाबलं जोई अप्पा दुक्खेहि भावएं 62 सुख में भावित किया ज्ञान दुःख के आने पर विनाश को प्राप्त हो जाता है और जिसने दुःख से ही अपने आप को भावित किया है, उसका ज्ञान पावन-पवित्र-शास्वत हो जाता हैं भो ज्ञानी आत्माओ! तेरा चेतन्य ना सुखमय है, ना दुःखमय है, वह शुद्ध चिन्मय चैतन्यभूत हैं धन्य है उस नारी के लिए जिसको बाल्यावस्था में वैधव्य को देखना पड़ा, फिर भी पिता से कहा-अहो! यह तो मेरे पुण्य का योग है कि अब मैं पराधीन पर्याय से मुक्त होकर स्वाधीन पर्याय की ओर आर्यिका दीक्षा लेने जाऊँगीं आज भी देखो प्रकाण्ड आर्यिका विदुषी विशुद्धमति माताजी जिनकी सल्लेखना हो गई, बाल-विधवा थीं पहले छोटी अवस्था में शादी हो जाती थी, चौथी क्लास पढ़ी है, 'त्रिलोकसार'-जैसे ग्रन्थों की टीका लिखी हैं उनके माता-पिता आप-जैसे नहीं थे कि ऐसे संस्कार देते कि चलो तुम्हारी दूसरी शादी किये देता हूँ. मानतुंग स्वामी की भक्ति से 48 ताले टूट गयें वादिराज स्वामी का कुष्ठ दूर हो गयां आस्था से आप भी भगवान् की भक्ति करोगे तो आपके भी पाप दूर हो जायेंगें भो ज्ञानी आत्माओ! वीतरागता की दृष्टि अलग है व राग की दृष्टि, विकार की दृष्टि अलग हैं जिसकी दृष्टि खोटी है, तुम उसके सामने सत्य को कहकर भूल मत कर देनां जब उसकी खोटी दृष्टि फूट जायेगी, तो अपने आप उसे सत्य नजर आने लगेगां अहो! जीवन में आप निर्दोष हो, तो कभी किसी को सफाई मत देना, तुम्हारी दृष्टि तुम्हारे पास हैं शुद्ध घी को ही यदि कोई व्यक्ति डालडा कह रहा है तो मत बताओ उसे शुद्ध घी श्रीपाल कहते हैं- पिताश्री! मैं वही कुष्ठी हूँ आप अपनी बेटी पर शंका तो मत करों उसके शील, तपस्या के प्रभाव से, सिद्धों की आराधना से हम अकेले ही नहीं अन्य सात-सौ कुष्ठी भी आज निरोग हो गयें भो ज्ञानी! 'अमृतचंद्र स्वामी' कह रहे हैं- श्रीपाल के तन में कुष्ठ हुआ था, तन का कुष्ठी मोक्ष जा सकता है, लेकिन जिसके मन में कोढ़ है, वह मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकतां एक निग्रंथ योगी के ऊपर श्रीपाल ने कचरा फिकवा दिया था, क्योंकि विभूति का वेग बड़ा खतरनाक होता हैं जिसको हों, (आज्ञा चलाना, वैभव का मिलना और युवावस्था) तीनों मिल गये फिर देखना क्या हालत होती है ? उस समय सात-सौ व्यक्तियों ने कुछ नहीं किया था, बेचारों ने मात्र ताली ही बजाई थीं उसका परिणाम कि श्रीपाल कोढ़ियों के सरदार हो गये और वे कोढ़ी प्रजा हो गयें इसीलिए, जीवन में ध्यान रखना, जिसकी परिणति Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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