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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 179 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
"निश्चयाभास से मोक्ष की असिद्धि"
सूक्ष्मापि न खलु हिंसा परवस्तुनिबन्धना भवति पुंसः हिंसायतननिवृत्तिः परिणामविशुद्धये तदपि कार्यां 49
अन्वनार्थ : खलु = निश्चय करं पुंसः = आत्मा के परवस्तुनिबन्धना = परवस्तु का है कारण जिसमें ऐसी सूक्ष्महिंसा अपि = सूक्ष्म हिंसा भी न भवति = नहीं होती है तदपि = तो भी परिणामविशुद्धये = परिणामों की निर्मलता के लियें हिंसायतननिवृत्तिः = हिंसा के आयतन परिग्रहादिकों का त्याग कार्या = करना उचित हैं
निश्चयमबुध्यमानो यो निश्चयतस्तमेव संश्रयतें नाशयति करणचरणं स बहिः करणालसो बाल:50
अन्वनार्थ : यः = जो जीवं निश्चयम् = यथार्थ निश्चय के स्वरूप को अबुध्यमानः = नहीं जानकरं तमेव = उसको ही (अंतरंग हिंसा को ही हिंसा का निश्चयतः = निश्चय श्रद्धान में संश्रयते = अंगीकार करता हैं स बालः = वह मूर्ख बहिः करणालसः = बाह्य क्रिया में आलसी हैं करणचरणं = बाह्य-क्रियारूप आचरण कों नाशयति = नष्ट करता हैं
मनीषियो! भगवान् तीर्थेश महावीरस्वामी की देशना को आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने विषयसुख का विरेचन करनेवाली परम औषधि कहा हैं अहो ज्ञानियो! जड़-देह को जड़-ओषधियों ने बहुत ठीक किया, लेकिन चैतन्य को शुद्ध करनेवाली कोई परम औषधि है तो वह वीतराग जिनेन्द्र-की-वाणी हैं शरीर को स्वस्थ्य करने के लिए पानीवाली दवाई मुख से पान की जाती है, परंतु चैतन्य को सुख देनेवाली ओषधि कर्ण-अंजुली से पान की जाती हैं 'पद्मप्रभमल धारि देव" ने "नियमसार जी" में, जिनेन्द्र की देशना को पान करने के लिए कर्ण-अंजुली बनाने का आदेश दिया हैं उसी देशना को एकाग्रचित्त से हम सुन रहे हैं संसार
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