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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 166 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 हो रहा हैं जब मरण चल ही रहा है तो मृत्यु जब होना होगी, तब होगीं अतः सहजता से चलों अहो! मरण श्रेष्ठ है, किन्तु दूसरे प्राणी के कलेवर को स्वीकार करना श्रेष्ठ नहीं हैं जो मरण से डर रहा हो तो ऐसा लगता है कि वह संसार से डर रहा है कि कहीं यह संसार न छूट जाएं अरे ज्ञानी! अभी तू सिद्ध नहीं बना है, दूसरी पर्याय मिल जायेगी जितनी इच्छाएँ अभी पूरी नहीं हुई हैं, वह आगे कर लेनां लेकिन ध्यान रखो, वे भी तभी पूरी होंगी, जब दूसरे की हिंसा नहीं करोगें तुमने लोभप्रलोभन देकर दूसरे के हृदय का प्रत्यारोपण अपने हृदय में करा लिया और उसे कमजोर बना दिया, वह तो मृत्यु के मुँह में ही चला गयां भावना करो कि, प्रभु! ऐसे रोग ही न हों असाता का उदय भी आ जाए तो अपने परिवार से कह देना-बेटा! णमोकारमंत्र सुना देना, कोई वनस्पति आदि की औषधि हो तो करा देना, लेकिन मेरी अन्तिम विदा में तुम, किसी के माँस को मत खिला देनां चाहे गोली बनाकर खिलाओ, चाहे तरल बनाकर पिलाओ, लेकिन अंश तो हैं यदि अहिंसक हो तो, ध्यान रखो, पूजा-विधान कर लेनां जब अच्छे से सोच बन जाये, तो कहना-प्रभु! हम परमप्रिय मृत्यु का वरण करेंगे, पर किसी जीव का मरण कराकर जीवन नहीं जीना चाहेंगें भो ज्ञानी! स्वयंभूरमण समुद्र का महामच्छ छ: माह जागता एवं छ: माह सोता हैं जब वह महामच्छ सो जाता है, तो उसका दो-सौ-पचास योजन का मुख खुला रहता हैं उस समय उसके मुख में अनेक जीव आते हैं और बाहर निकलते हैं उसके कान में एक छोटा-सा तन्दुल-मच्छ बैठा होता हैं उसे कर्णमच्छ भी कहते हैं वह सोचता है कि यदि मुझे इतनी बड़ी अवगाहना मिली होती, तो मैं एक को नहीं छोड़तां उस महामच्छ के कान के मल को खानेवाला तन्दुलमच्छ ऐसे कलुषित-भाव करके सातवें नरक जाता हैं पता नहीं यह जीव बिना सताए कितने जीवों को सता रहा है? तुम सबल हो, तो निर्बल को सता रहे हों लेकिन कर्म कह रहा है कि तुम मेरे साथ रहो, हम सबको सबल बनाकर रखेंगे, सबका साथ देंगें इसलिए आचार्य महाराज कह रहे हैं कि कषाय के योग से जो प्राणों का व्यपरोपण चल रहा है, चाहे तुम किसी पर बरसो, न बरसो, पर यदि तुम अंतरंग में जल भी रहे हो, तो भी हिंसा हो रही हैं भो ज्ञानी! एक माँ कहती है कि हम तो अपने बेटे को डाक्टर बनाएँगे, परन्तु पिता कहता है कि हम बनाएँगें बात ऐसी बढ़ गई कि घर में महाभारत शुरू हो गयां पडोसी ने हल्ला सुना, तो पछता है 'आप लोग तो बड़े प्रेम से रहते थे, यह हल्ला क्यों होने लगा?' तुम्हें क्या मालूम कि हमारे घर की क्या विडम्बना हो रही है? पत्नी कहने लगी-मैं बीमार रहती हूँ, इसलिए सोचा है कि अपने बेटे को डाक्टर बनाऊँगीं पति कहने लगा-आपको मालूम नहीं कि मेरे कितने केस चल रहे हैं, हम तो वकील बनाएँगें पड़ौसी बोला- भैया! उस बालक से तो पूछ लो कि वह क्या बनना चाहता है? जैसे ही यह शब्द आया कि बालक से तो पूछ लो, तो दोनों हँसकर कहने लगे कि बालक तो अभी जन्मा ही नहीं हैं अभी तो गर्भधारण मात्रा हुआ है, इससे पहले युद्ध शुरू हो गयां अहो! जो आपके सामने है ही नहीं, उसके बारे में सोच-सोचकर Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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