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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 162 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भिन्न-आत्मा भी जब उपास्य-आत्मा की उपासना करता है, तो वह भी परमात्मा हो जाता है, क्योंकि ध्येय का ध्याता जब ध्यान करता है, तो वह स्वयमेव ध्येय हो जाता हैं भो ज्ञानी! एक बार समयसारभूत बन जाओं ज्ञेय, ज्ञेय है; ज्ञाता, ज्ञाता हैं ज्ञेय-तत्त्व विश्व में अनन्त हैं उन अनन्त ज्ञेयों में तू भी एक ज्ञेय हैं लेकिन जीव की यह अनुपम महिमा है कि यह ज्ञेय भी हैं और ज्ञाता भी हैं द्रव्य तो ज्ञेय मात्र है, ज्ञाता नहीं हैं अहो! जब जीव अनन्त ज्ञेयों को भूल जाता है, तब स्वज्ञेय ज्ञान में आता हैं जब तक अनन्त ज्ञेयों को जानने का विकल्प योगी के मन में रहता है, जब तक स्वज्ञेय को जान नहीं पातां जब सम्पूर्ण ज्ञेयों से अज्ञानी हो जाता है, तब एकमात्र स्वज्ञेय को जानता हैं जब स्वतत्त्व को जो एक बार जान लेता है, तो पुनः अनन्त ज्ञेयों का ज्ञाता बन जाता हैं भो चेतन! जब निज ज्ञेय-तत्त्व को जानेगा, तो उसी दिन अनन्त ज्ञेयों का ज्ञाता केवली भगवान् भी बन जायेगां उस ज्ञेयतत्त्व की प्राप्ति में अनन्त-बल की ताकत ही तुझे अनन्त- बलशाली बना पायेगी, ऐसा है समयसारं
भो ज्ञानी! जैसे मक्खन की माधुर्यता, स्निग्धता, कोमलता को मापकर बता पाना कठिन है, ऐसे ही आत्मा की निर्मलता का व्याख्यान पौद्गलिक-वाणी से करना असंभव हैं इसलिए ध्यान से समझनां समयसार में भी निरत हो और पंच-पापों में भी लीन हो, अहो! छल मत करो ,कपट मत करो निज आत्मदेव के साथ पंच पापों का भोक्ता बनकर कोई भी आत्मभोक्ता नहीं बन सकतां भो मनीषी! तर्क लगाना, जो पंच पापों में लिप्त है, यदि परमेश्वर बन गया, तो पंच महाव्रतों का पालक क्या निगोद जायेगा ? ध्यान रखना, महाव्रती कभी अनन्त भव धारण नहीं करते; महाव्रती कभी निगोद नहीं जातें अरे ज्ञानी! अनन्त बार कोई मुनि नहीं बन सकता, अनन्तबार कोई महाव्रती नहीं बन सकता, यह सिद्धांत हैं बत्तीस भव से ज्यादा कोई निग्रंथ, भावलिंगी-मुनि बन ही नहीं सकतां जो अनन्तवार ग्रेवेयक गया है, वह मुनि नहीं गया; मात्र मुनिव्रत धारण करने वाला गया है, क्योंकि कुन्दकुन्द देव ने 'समयसार' जी में लिखा है-अज्ञानीजीव कहता है कि इस मार्ग से नहीं जाना, मार्ग लुटेरा हैं अहो ज्ञानी आत्माओ! मार्ग ने कब, किसको लूटा है ? वे अज्ञानी हैं, जो मार्ग को लुटेरा कहते हैं ऐसे ही महाव्रत कभी निगोद नहीं ले जातें जो मोक्षमार्ग में पहुँच कर भी विषय-कषायों के
के पीछे अपने आप को चिपका देते हैं, ऐसे लोग नरक-निगोद जाते हैं मुनि कभी नरक-निगोद जा ही नहीं सकतां ध्यान रखना, निग्रंथ-दशा में निगोद-अवस्था कभी नहीं मिलती परंतु जो जीव संयम के मार्ग पर पहुँचकर भी संयमी नहीं होता, वह निगोद जाता हैं
भो ज्ञानी! परिणाम ही गुणस्थान हैं अतः, चर्चा करो तो ऐसी करो जिससे संयम में वृद्धि हो, चारित्र में वृद्धि हो, श्रद्धा में वृद्धि हों अहो! जो गिरते को उठा ले वह आगम है, पर बेचारे गिरते को तुम और धक्का मत लगा देनां पंच पाप का त्यागी, महाव्रती यति ही समयसारभूत होता है और जो एकदेशव्रती अर्थात् एकदेश पंच पाप के त्यागी होते हैं, वह उस समयसारभूत योगी के उपासक होते हैं इसीलिए श्रावक का दूसरा नाम
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