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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज
Page 158 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 की होती है, प्रसन्नता चेहरे तक होती है और सुखी हृदय से होता हैं दूसरे शब्दों में इसे आप प्रमुदित भी कह सकते हो, क्योंकि ज्ञानी-धर्मात्मा धर्म की बात को देखकर प्रमुदित होता है, वह प्रमोदगुण अंदर से आता हैं आपको पेन मिल गया, आप प्रसन्न हो गयें जब घर में बेटे का जन्म होता है तो पूरा परिवार खुश हो जाता है, लेकिन आनंद नहीं आता हैं आनंद अंदर से आता हैं बाहर के द्रव्यों की प्राप्ति से जो सुख महसूस करते हो, वह खुशी होती है; पर अन्दर के गुणों से जो खुशी आती है, उसका नाम आनन्द होता हैं जो ज्ञानी निज में निज का रमण करता है, उससे जो आनंद प्रकट होता है, वह परमानंद होता हैं इसलिये खुशी तक ही सीमित मत रह जाना, आनंद और परमानंद की ओर बढ़ना
चूलगिरी जयपुर
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