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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 153 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002
भो ज्ञानियो! रत्नत्रय मोक्ष नहीं है, मोक्षमार्ग हैं यहाँ आचार्य भगवान् कह रहे हैं; चारित्र तो धारण कर लेना, लेकिन अज्ञानपूर्वक नहीं पहले अच्छी तरह जान लेना कि कौन सा ज्ञान? सम्यज्ञान, ही आत्म-कल्याण का ज्ञान हैं यहाँ पोथियों के ज्ञान की बात नहीं कर रहे हैं, मोह को विगलित करने वाले ज्ञान की बात कर रहे हैं आप शास्त्रज्ञान भी करें, पर आप उसका निषेध न करें, क्योंकि श्रुतज्ञान ही केवलज्ञान का जनक होता है, श्रुत का अविनय मत कर देना उत्तम ज्ञान के उपरांत ही चारित्र कीआराधना होती है, इसलिये ज्ञान के उपरांत ही चारित्र की आराधना करनी चाहियेंक्योंकि जिसको तुम स्वीकार करने जा रहे हो, उसके बारे में इतना तो समझ लो कि मैं धारण कर क्यों रहा हूँ? चारित्र परम्परा नहीं है, चारित्र तो आत्मा को परमात्मा बनाने की विद्या हैं उस विद्या को समीचीन रूप से समझ कर स्वीकार करोगे, तो जरूर ही परमात्मा बन जाओगे
अहिछेत्र स्थित श्री पार्श्वनाथ भगवान एवं श्री मंदिरजी
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