SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 15 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 भो ज्ञानी! वास्तव में स्वामी तो स्वयं चेतन्य- द्रव्य है, परन्तु विपरीत आचरण के कारण, अनादि से मोह की दशा में लिप्त हैं आत्मा की परिणति से ही मन एवं इंद्रियां काम कर रही हैं अतः, इन्द्रियों को दोष मत देना, मन को दोष मत देनां दोष देना है, तो इस अशुद्ध चेतना को देनां यदि यह अशुद्ध चेतना निर्मल हो जाए तो इंद्रियाँ तो अर्हन्त की भी होती हैं, पर उन्होंने मोहनीय कर्म को जीत लिया हैं इसलिए मन -सम्राट को पकड़ लो, सेना को मत मारो, अब इंद्रियों को कुचलने की कोई आवश्यकता नहीं हैं अहो! आत्मा की सिद्धि का जिसमें उपाय लिखा हो वह है पुरुषार्थ- सिद्धयुपायं जैसी-जैसी पर्यायें हो रही हैं, होनी हैं और हो चुकी हैं, वह सब केवली के ज्ञान में झलक रही हैं तीनों लोक केवली के ज्ञान में झलकते हैं, जैसे दर्पण के सामने पदार्थ झलकते हैं, प्रतिबिम्ब झलकता हैं फिर भी ध्यान रखना, ये दर्पण में झलक रहे हैं, पर तुम्हारे मति व श्रुत ज्ञान अपने दर्पण में नहीं झलक रहे हैं, वर्ना यह अज्ञानी अपने ज्ञान में केवली के ज्ञान को झलकाने लग जायें भो ज्ञानी! गुण की प्रधानता से कथन चल रहा हैं पंद्रह श्लोकपर्यन्त आप लोगों को बहुत एकाग्रचित्त होकर सुनना हैं वर्तमान में श्रमणसंस्कृति में जितने विसंवाद खड़े हो रहे है, उन सारे के सारे विसंवादों की चर्चा इन पंद्रह श्लोकों में होगी, बड़ी सरल दृष्टि से होगी, क्योंकि एक हजार वर्ष तक आचार्य कंदकंद स्वामी के साहित्य पर किसी ने कलम नहीं चलाईं ये अमृतचंद्र स्वामी प्रथम आचार्य हैं, जिन्होंने आचार्य कुंदकुंद स्वामी को समझा और हमें समझाया हैं अहो! जितने सहज कुंदकुंद स्वामी के सूत्र हैं, उतनी ही गहरी है अमृतचंद्र स्वामी की टीका जैनदर्शन में प्रगाढ़ और प्रौढ़ भाषा यदि किसी की है तो, मनीषियो! आचार्य अमृतचंद्र स्वामी की हैं जयसेन स्वामी की भी आप सबके ऊपर अनंत कृपा है कि उन्होंने 'समयसार' को ऐसा बना दिया जैसे हम कथानक की वाचना कर रहे हों, एक-एक गाथा का, एक-एक नय का, स्पष्ट कथन कर दियां भो ज्ञानी! आज मनुष्य को ज्ञान का अजीर्ण हो रहा हैं 'धवला' पुस्तक नौ में लिखा है-अविनयपूर्वक श्रुत का अभ्यास किया और कालाचार आदि का ध्यान नहीं रखा, तो ध्यान रखो, आपकी दुर्गति निश्चित हैं विद्वान को रोगी देखा जा रहा है, घर में क्लेश देखा जा रहा है, परस्पर में विसंवाद देखे जा रहे हैं कुछ रहस्य न होता तो हमारे आचार्य भगवन्त लिखते क्यों ? रात्रि के काल में 'षट्खण्डागमजैसे ग्रंथों के स्वाध्याय का पूर्ण निषेध हैं चार्तुमास में जब बादल गरज रहे हों, बिजली तड़क रही हो, पानी बरस रहा हो तो सिद्धांत/सूत्र ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया जा सकता हैं यदि इनका अष्टमी/चतुर्दशी की तिथियों में अध्ययन करें तो असमाधि होती है, क्योंकि यह पर्व के दिन हैं, इन दिनों में आपको बड़ा उत्साह रहता है, उत्साह में एकाग्रता भंग हो जाती हैं इसी तरह दिग्दाह हो रहा हो, ओले गिर रहे हैं, उस समय परिणाम विच्छेद रहते हैं, अतः ऐसे काल में सिद्धान्त -ग्रन्थ का स्वाध्याय कर अनर्थ कर डालोगें हम लड्डू खाकर आये हैं, पूड़ी-पापड़ खाकर आये हैं, ऐसी स्थिति में इनका स्वाध्याय नहीं करना, क्योंकि प्रमाद बढ़ेगा, Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy