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पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमृत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 148 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 v-2010:002
सम्यक्चारित्र अधिकार "ज्ञान का फल संयम"
विगलितदर्शनमोहैः समजसज्ञानविदिततत्त्वाथैः नित्यमपि निःप्रकम्पैः सम्यक्चारित्रमालम्ब्यमं37
अन्वयार्थ : विगलितदर्शनमोहै: = जिन्होंने दर्शनमोह का नाश कर दिया हैं समञ्जसज्ञानविदिततत्त्वाथैः = सम्यग्ज्ञान से जिन्होंने तत्त्वार्थ को जाना हैं नित्यमपि निःप्रकम्पै = जो सदाकाल अकम्प अर्थात् दृढ़ चित्तवाले हैं ऐसे पुरुषों द्वारां सम्यक्चारित्रं = सम्यकचारित्रं आलम्ब्यम् = अवलम्बन करने योग्य हैं
न हि सम्यग्व्यपदेशं चरित्रमज्ञानपूर्वकं लभतें
ज्ञानानमुक्तं चारित्राराधनं तस्मातं38
अन्वयार्थ :
अज्ञानपूर्वकंचरित्रं = अज्ञानसहित चारित्रं सम्यग्व्यपदेशं = सम्यक् नाम कों न हि लभते = प्राप्त नहीं करतां तस्मात् = इसलिए ज्ञानानन्तरं = सम्यग्ज्ञान के पश्चात चारित्राराधनं = चारित्र का आराधनं उक्तं = कहा गया हैं
मनीषियो! अंतिम तीर्थेश भगवान् महावीर स्वामी की पावन पीयूष देशना हम सभी सुन रहे हैं आचार्य भगवान् अमृतचंद्र स्वामी ने हमें बहुत ही सहज सूत्र दिया है कि जीवन में आत्म-ज्योति का दिग्दर्शन करानेवाला सम्यज्ञान है और सम्यक्ज्ञान है तो सम्यक्चारित्र है; इन दोनों के भी पहले यदि कोई विराजमान है तो उसका नाम सम्यकदर्शन हैं कोई जीव यह कहे कि ज्ञान मात्र से मोक्ष होता है अथवा कोई कहे कि दर्शन मात्र या चारित्र मात्र से मोक्ष होता है तो यह तीनों तीन प्रकार के मिथ्यादृष्टि जीव हैं अहो! दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता जहाँ से होती है, मनीषियों! वहाँ से मोक्ष नहीं, मोक्षमार्ग प्रारंभ होता हैं
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