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________________ पुरुषार्थ सिद्धि उपाय : आचार्य अमत चंद्र स्वामी पुरुषार्थ देशना : परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विशुद्ध सागरजी महाराज Page 103 of 583 ISBN # 81-7628-131-3 -2010:002 चक्रवर्ती की बुद्धि भी मिलती हैं जो तीर्थंकर बनता है, वह जन्म से तीन ज्ञान का धारी होता हैं अतः, आकाँक्षायें जब पूरी नहीं होती हैं, तो ईर्ष्या का उद्भव होता हैं आकाँक्षा यदि नहीं है, तो आप धनी हों आकाँक्षा है, तो चक्रवर्ती भी निर्धन है, चाहे किसी की आराधना कर लेना, कितनी ही साधना कर लेना आचार्य कार्तिकेय स्वामी कार्तिकेयान्प्रेक्षा' में लिख रहे हैं : णयकोवि देदि लच्छी णकोवि जीवस्स कुणदि उवयारं उवयारं अवयारं कम्मं पि सुहासुहं कुणदिं 319 हे जीव! तुझे कोई लक्ष्मी नहीं देता, न तेरा कोई उपकार कर सकता है और न कोई तेरा अपकारं शुभ-कर्म ही उपकार करने वाला है और अशुभ-कर्म अपकार करने वाला हैं परन्तु निमित्त आपको दिख जाते हैं कि इन्होंने मेरे साथ ऐसा किया, इन्होंने मेरे साथ बुरा कियां ध्यान रखो, जिसे तुम बुरा कहते हो वह किसी का अच्छा करने वाला भी हो सकता है, जिसे तुम अपना अच्छा करने वाला कहते हो वह किसी का बुरा करने वाला भी हो सकता हैं अब कैसे कहूँ कि यह अच्छा करने वाला है कि बुरा करने वाला है ? इतना ही तो समझना हैं भो चेतन आत्मा! जीव उपयोगमयी है, लेकिन उपयोग का कर्ता तू ही है और उपयोग के फल का भोक्ता भी तू ही है सिद्धान्त में तुम्हारा स्वार्थ हो जाये, तो पुण्य का परिणाम समझनां लेकिन सिद्धान्त किसी के स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए नहीं होतां आकाँक्षायें होंगी, तो कर्म बंध होगा, चाहे द्रव्य मिले या न मिलें कभी-कभी बिना भोगे भी बन्ध होता हैं मन कहता है कि 'उठा लूँ ? नहीं, अपनी वस्तु नहीं हैं अरे! सब ही तो उठा रहे हैं। यह भूल कभी भूल कर मत कर देनां अमुक भैया ने किसी के कुरते को उठा लिया, तो उसका तात्पर्य यह नहीं है कि दूसरे भैया कहें कि जब इतने बड़े भैयाजी कर सकते हैं, तो हमें क्या दोष ? ध्यान रखना, पूर्व में सुकृत किया था, इसीलिये बड़े हैं जब उन्होंने दूसरे का कुरता उठा लिया, इसीलिये बड़े नहीं हैं, वह तो परम छोटे हो चुके हैं, बंध कर चुके हैं भो ज्ञानी! वह दृश्य कैसा होगा जब साक्षात् केवली-भगवान विराजते होंगे , उनके चरणों में श्रावक बैठे होंगे, श्रमण बैठे होंगें उन जीवों का कितना शास्वत पुण्य होगा? अरे! आकांक्षा करो तो ऐसी करो जिससे फिर दूसरी आकांक्षा करने की आकांक्षा न हो "दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाओ, सुगइगमणं, समाहि-मरणं, जिण-गुण-सम्पति होउ मज्झं" Visit us at http://www.vishuddhasagar.com Copy and All rights reserved by www.vishuddhasagar.com For more info please contact : akshayakumar_jain@yahoo.com or pkjainwater@yahoo.com
SR No.009999
Book TitlePurusharth Siddhi Upay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorVishuddhsagar
PublisherVishuddhsagar
Publication Year
Total Pages584
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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